Monday, August 20, 2018

संस्कृत परिचर्चा - 6

संयोजक: अभिनन्दन शर्मा


Day 6
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श्लोक:
यथा तु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामह: ।
त्वाम् परित्यज्य नो तिष्ठेत तथा भव वरप्रदा ।।
वेदशास्त्राणि सर्वाणि नृत्यगीतादिकम् च यत  ।
वाहितम् यत त्वया देवि तथा मे सन्तु सिद्धयः ।।
लक्ष्मीमेधां वरा रिष्टिगौरी  तुष्टि: प्रभा मतिः ।
ऐताभिः पाहि तनुभीरष्टाभिमाँ सरस्वती ।।

अर्थ:

सरस्वती जी के आठ रूप - लक्ष्मी,वरा मेधा, रिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, मति

मेधा : स्मृति, धारण शक्ति जैसे - मेधावी छात्र
तुष्टि : सन्तोष, ज्ञानवान जैसे - संतुष्टि
प्रभा : सामर्थ्य, बुद्धिमान
बुद्धि : विवेचना करने की शक्ति ।
विवेक : सही गलत निर्चरण क्षमता
धी : समझ
प्रज्ञा : ज्ञान का बोध करने वाली बुद्धि जैसे - प्रज्ञावान
कुशाग्र : कुश(सूखी हुई घास) का अग्र भाग = तीव्र बुद्धि
हृल्लेख : हृदयम् लिखति इति हृल्लेख = ह्रदय के भावो की लिखना
पाहि : रक्षा करना

सुभाषित:
दानेन पाणिनः न तु कङ्कणेन: स्नानेन शुद्धिः न तु चन्दनेन ।
मनेन तृप्तिः न तु भोजनेन: ज्ञानेन मुक्तिः न तु मुण्डनेन ।।

हाथों की शोभा चूड़ियों से नहीं, दान देने से होती है ।
शरीर की शुद्धि चन्दन लगाने से नहीं, स्नान करने से होती है ।
मन की तृप्ति भोजन करने से नहीं, मान-सम्मान से होती है ।

मुक्ति मुण्डन करने से नहीं, ज्ञान अर्जित करने से मिलती है ।

पाँच कारणोंं से बुद्धि क्षय होती है - लालच, मोह, क्रोध, शोक, काम तो इन पांच स्थितियों से बचना चाहिए । 

मन चँगा तो कठौती में गंगा

सोमवती अमावस्या थी, सब लोग गङ्गा नहाने गए तो एक जूता बनाने वाले चमार को भी बोला चलने के लिए पर उसने मना कर दिया । जब लोग गङ्गा में नाहा रहे थे तो एक औरत का सोने का कङ्गन पानी में बह गया और बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिला । वो औरत जब वापस आ गयी तो उसी जूता बनाने वाले ने उस औरत से उसके उदास होने का कारण पूछा तो औरत ने रुआंसे मुँह से सारी कहानी सुना दी । मोची ने औरत को बैठने के लिए कहा । फिर उसने अपनी कठौती में हाथ डाला और कङ्गन निकाल के दिया और पूछा कि माई यही कङ्गन था क्या? औरत ने हैरानी से कहा,  हाँ यही कङ्गन था । औरत ने पूछा के तुम्हे ये कङ्गन कैसे मिला तो मोची ने कहा कि यही तो मैं कह रहा था - मन चँगा तो कठौती में गङ्गा ।

*कठौती - चमड़े का खुले मुँह का बर्तन जिसमे मोची पानी रखते हैं ।

निष्कर्ष: आंतरिक/मानसिक स्नान से ही आत्मा कि शुद्धि होती है न कि मीलों तक घूमकर भगवान् के दर्शन करने से ।

माघ कवी बहुत ही दरिद्र थे परन्तु उनका लोगों में बहुत सम्मान था । एक बार उनकी पत्नी की धोती थोड़ी सी फट गयी तो उन्होंने कवी माघ से राजा के पास

जड़ भरत की कहानी

एक थे राजा भरत जो कि ऋषभ देव (जैन समाज के पहले प्रवर्तक) जी  के पुत्र थे । राजा भरत ने राजपाट संभाला और कई सालो के बाद समय आने पर वानप्रस्थ के लिए तैयार हुए और जंङ्गल चले गए । जंङ्गल जाकर वे ध्यान, जप, हवन, लकड़ियाँ काटना और ऋषियों के काम करते थे । एक दिन वे पानी भरने के लिए तो वह एक हिरणी पानी पीने के लिए आ गयी जोकि गर्भवती थी और थोड़ी देर में वहाँ एक शेर भी आ गया । जब शेर दहाड़ा तो हिरणी वहाँ से कुलाचें भरती हुई भाग निकली परन्तु कुलाचें भरने में उसका गर्भ नदी में गिर गया और हिरणी थोड़ी आगे थक कर मर गयी । हिरणी का बच्चा बहते हुए भरत के पास आ गया, उन्होंने देखा कि बच्चा तो जिन्दा है और उसकी माँ अब नहीं रही तो उसे अपने साथ आश्रम ले आये और उसकी देखभाल करने लगे । अब कोई भी काम करते हुए उनका ध्यान हिरणी के बच्चे कि तरफ ही लगा रहता था । वो ये भूल गए कि वे सब कुछ छोड़कर और सारे बन्धन तोड़कर जङ्गल में स्वाध्याय के लिए आये थे परन्तु उस हिरणी के बच्चे के मोह में फँस गए क्योंकि ज्ञानी पुरुष को भी विषय तनिक भर में ध्यानभङ्ग कर सकते हैं । उदहारण : "ऋषि विश्वामित्र ने कई साल तपस्या की और मेनका ने आकर उनकी तपस्या भङ्ग कर दी और उनका ध्यान भटक गया ।" एक रात हिरन बाहर गया और वापस नहीं आया । राजा उसकी चिन्ता में रहने लगे और इसी तरह वे मर गए । ऐसा कहा गया है जो अन्त समय में जैसा ध्यान करता है, वैसा ही बन जाता है तो भरत जो मरते समय भी उस हिरन की चिन्ता में थे तो अगले जन्म में वे भी हिरन ही बने परन्तु उनके तप के कारण उन्हें पिछले जन्म की स्मृति थी ।

*इसी कारण अन्त समय ईश्वर को याद करने को कहा जाता है ताकि ईश्वर को याद करके इस भव सागर से मुक्ति मिल जाये परन्तु अगर हमने आयु रहते कभी ईश्वर का नाम न लिया हो तो अन्त समय में, जब तरह तरह की चिन्ताएं एक पल में आँखों के सामने आ जाती हैं, तो फिर ईश्वर को नाम कैसे आ पायेगा इसलिए ईश्वर को याद करते रहो ।

हिरन वाला पूरा जन्म उन्होंने एक ऋषि के यहाँ काट दिया और मर गए । अगले जन्म में वे एक ब्राह्मण के यहाँ पैदा हुए और फिर तपस्या शुरू कर दी (इस बार किसी तरह के मोह से बचने के लिए उन्होंने चुप्पी साध ली, कुछ भी पढ़ना लिखना नहीं किया और जड़बुद्धि जैसे बन गए, क्योंकि वैसे भी पिछले जन्म से सब कुछ याद होने की वजह से उनका ज्ञान पहले से ही अर्जित था) । उनके पिताजी की मृत्यु के बाद उनके भाइयों ने सारी जमीन आपस में बाँट ली और उन्हें कुछ नहीं दिया । राहुगढ़ वो कपिल मुनि के आश्रम जाना चाहता था तो पालकी में बैठकर सैनिको को लेकर चल दिया। चलते चलते एक कहार की तबियत ख़राब हो गयी तो वे दूसरा कहार ढूंढने निकल पड़े और जड़ भरत को ही पकड़ लाये । वे चलते हुए नीचे देखते हुए चींटियों और दुसरे कीड़ो को बचाते हुए चलने लगे जिससे दुसरे कहार सामन्जस्य नहीं रख पाए और पालकी बहुत अधिक हिलने लगी । राजा ने जड़ भरत को डाँटा और

विषयों का चिन्तन करना चिंता होता है और ईश्वर में ध्यान लगाना चिन्तन होता है । 

चर्चा :
संगीत पैदाइश से ही हमारे साथ होता है क्योंकि पैदा होने पर जब बच्चा रोता है तो वो भी सङ्गीत ही है | सङ्गीत 

तीन प्रकार का होता है
१. जब किसी बच्चे को गाने के लिए कहा जाता है तो वह श्रम होता है क्योंकि वह जबरदस्ती गाता  है
२. जब हम सङ्गीत को पढ़ते हैं, समझते हैं, रागो को जानते हैं तो वह शिल्प होता है
३. जब हम सङ्गीत को आत्मसात कर लेते हैं, भाव से गाते हैं, तो वह कला बन जाती है, उदाहरणार्थ बहुत से ऐसे लोग हुए हैं जिनकी कोई संगीत शिक्षा नहीं हुई, जो रागो को नहीं जानते थे परन्तु गाते बहुत अच्छा थे |

सङ्गीत भी ईश्वर तक पहुंचने का एक साधन है |

सा रे गा मा पा ध नि स - ये सुर नहीं अपितु सुरों को लिखने का तरीका हैं | सुर असल में वे होते हैं जिनके उच्चारण में व्यवधान नहीं होता |

पहला सुर - षडज(छह बार जन्म लेने वाला ) - जो छह भागो में पाले गए हैं यानी कार्तिक(षडानन) और उनका वाहन मोर है |
दूसरा सुर - ऋषभ(बैल) -
छठा सुर - धैवत - दौड़ने वाला यानी घोडा
सातवा सुर - निषादी - महावत

लय - प्रकृति में हर जगह लय  पायी जाती है जैसे की सागर की लेहरो में, वायु में |
लय तीन प्रकार की होती है

विलम्बित - उदाहरण - शिवताण्डव स्त्रोतम (प. जसराज द्वारा)
मध्यम -
द्रुत - सबसे तेज, उदहारण शिवताण्डव स्त्रोतम (शङ्कर महादेवन)

मात्रा(beat)- किसी अक्षर को बोलने में लगने वाला समय |

ह्र्स्व - छोटी मात्रा
दीर्घ - बड़ी मात्रा
प्लुत - सबसे बड़ी मात्रा

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Monday, August 13, 2018

संस्कृत परिचर्चा - 4

संयोजक: अभिनन्दन शर्मा


Day 4
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श्लोक:
यस्याज्ञा जगतसृष्टा विरंचि: पालको हरिः ।
संहर्ता कालरुद्राख्यो नमस्तस्यै पिनाकिने ।।

अर्थ : 
जिसके आदेश से ब्रह्मा जी संसार कि सृष्टि करते हैं और श्री हरी पालन करते हैं, जो काल रूद्र का रूप रख कर के संहार करते है ऐसे पिनाक को धारण करने वाले को मैं नमस्कार करता हूँ ।

*श्री विष्णु और शङ्कर जी अनादि हैं और पैदा नहीं होते, ब्रह्मा जी मरते और पैदा होते हैं ।

सुभाषित:
शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खाः यस्तु क्रियावान् पुरुषः स विद्वान् ।
सुचिन्तितं चौषधामातुराणाम् न नाममात्रेण करोत्यरोगम् ।।

अर्थ :
शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद भी लोग मूर्ख रह जाते हैं, लेकिन जो शास्त्रों को पढ़ कर अपने जीवन में उनका अनुकरण करते हैं वही विद्वान हैं । जैसे रोग दूर करने के लिए दवा की अच्छी जानकारी होना या दवा का नाम ले लेना पर्याप्त नही अपितु दवा का नियमित सेवन करना आवश्यक एवम् लाभदायक होता है।

फेसबुक और whatsapp ने शिक्षा शास्त्र के चिन्तन (revision) वाले भाग को समाप्त कर दिया हैं जिससे हमारी बुद्धि को याद रखने में परेशानी होती हैं ।

कथा:
कृष्ण जन्म की कथा 

कन्स के पिता का नाम उग्रसेन और उनके भाई थे देवक और उनकी बेटी थी देवकी और ये भोज वंश के थे । उग्रसेन की सभी पुत्रियां कन्स से बड़ी थी परन्तु देवकी उनसे छोटी थी तो कन्स का देवकी से बहुत स्नेह था । वसुदेव उग्रसेन के यहाँ मंत्री थे और सत्यवादी थे, देवकी का विवाह वसुदेव के साथ तय कर दिया गया । विवाहोपरान्त कन्स राजकुमार होते हुए भी स्वयं रथ चलाते हुए उन्हें विदा करने चल दिए । कन्स को देवकी बहुत प्रिय थी परन्तु वह था बहुत आतताई । कन्स के अत्याचारों के चलते सभी देवता उसके दमन के लिए पहले ही श्री विष्णु का आह्वान कर चुके थे सो जब कन्स देवकी को विदा करने जा रहा था तब रस्ते में ही आकाश से भविष्यवाणी होती है कि "अरे मूर्ख कन्स, तू जिस बहन को इतना प्रेम करता है उसी का आठवां पुत्र तेरा वध करेगा"। कन्स सकते में आ गया और तुरन्त ही तलवार लेकर देवकी को मरने के लिए दौड़ पड़ा । तब वसुदेव जो कि एक मंत्री थे, बुद्धि से काम लेते हुए कन्स को समझाने कि कोशिश करने लगे (कन्स बहुत ही शक्तिशाली और राक्षसी प्रवृत्ति का था तो वसुदेव उससे युद्ध नहीं जीत सकते थे सो उन्होंने उस क्षण कि विपत्ति को टालने के लिए साम,दाम,दण्ड और भेद कि नीति अपनाई)और कहा कि अरे कन्स क्या कर रहे हो, तुम एक लड़की पे तलवार चलाने का अधर्म करोगे, उस पर भी वो जो कि तुम्हारी बहन है, उस पर भी जो कि अभी शादी होकर अपने घर जा रही है, तो कन्स बोला कि क्या तुमने भविष्यवाणी नहीं सुनी ।  इस पर वसुदेव बोले कि जो पैदा हुआ है वो मरेगा ही । अगर तुझे लगता है कि देवकी कि आखिरी सन्तान तुझे मारेगी तो इसमें देवकी को मारने कि आवश्यकता नहीं है । वसुदेव, कन्स का बखान करके उसे फुसलाने लगे और कहा कि एक छोटा सा बच्चा तुम जैसे अनन्त बलशाली का क्या बिगाड़ सकता है । आगे वे बोले कि हे कन्स एक कीड़ा एक दाल को तब छोड़ता है जब दूसरी पर पैर रख लेता है, ठीक उसी तरह आत्मा भी तभी पहला जीव छोड़ती है जब उसे दूसरा जीव मिल जाता है । मरना सभी ने है और तेरा भी काल आएगा परन्तु उस काल के आने तक तुम्हे चिन्ता करने कि आवश्यकता नहीं है । अगर तुम्हे लगता है कि देवकी कि आठवीं सन्तान तुम्हे मार सकती है तो मैं वचन देता हूँ कि जो भी सन्तान होगी, उसे लाकर मैं तुम्हे दे दूंगा । वसुदेव मिथ्याभाषी नहीं थे और हमेशा सत्य बोलते थे तो कन्स ने रङ्ग में भङ्ग न करते हुए विदाई हो जाने दी ।
*यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि वसुदेव ने कन्स का युद्ध में सामना न करते हुए समय कि आवश्यकता को समझा और उसके क्रोध को शांत करने की कोशिश की ताकि किसी तरह वो क्षण निकल जाए और देवकी बच सके । किसी के आत्महत्या का समय भी इसी तरह से बहुत महत्वपूर्ण होता है और कहा जाता है आत्महत्या करने वाले के वो पांच मिनट जानलेवा हो सकते हैं और उस समय उसका ध्यान किसी दुसरे विषय कि ओर भटकाना चाहिए क्योंकि अगर आपने उन पांच मिनट में उसे रोक लिया तो शायद वो आत्महत्या करने का विचार भी त्याग दे ।

वसुदेव, देवकी को लेकर आपने घर चले गए और कन्स आपने घर चला गया । जब वसुदेव और देवकी का पहला पुत्र हुआ तो वसुदेव आपने वचन अनुसार उसे लेकर कन्स के पास आ गए और पुत्र, कन्स को दे दिया । वसुदेव की सत्यवादिता देखकर कन्स पिघल गया और उसने कहा  वसुदेव मुझे तुम्हारे बच्चों से कोई परेशानी नहीं है, मुझे तुम्हारा आठवां पुत्र मारेगा तो तुम उसे लेके मेरे पास आ जाना तो वसुदेव पुत्र को लेकर वापस आ गए । इधर कन्स ने जब बच्चे को नहीं मारा तो देवताओं में हलचल मच गई क्योंकि अगर कन्स पाप नहीं करेगा तो मृत्यु के समीप कैसे पहुंचेगा तो नारद जी कन्स के पास गए और उन्होंने उसे कहा कि तूने तो बच्चा छोड़ दिया पर तुझे ये कैसे पता चलेगा कि कौन सा बच्चा आठवां है और yadi वसुदेव तुझे aathvein कि जगह छठा बच्चा दे गए तो तुझे कैसे पता चलेगा? नारद जी कि बातों में आकर कन्स ने फिर सभी बच्चों को मारना शुरू कर दिया । अभी तक कन्स ने वसुदेव और देवकी को जेल में नहीं डाला था और वे अपने घर में थे केवल बच्चा होने पर उसे दे जाते थे । सातवे गर्भ से शेषनाग(बलराम) को पैदा होना था तो योगमाया ने माया से देवकी के गर्भ को रोहिणी(वसुदेव कि दूसरी पत्नी जो गाँव में कन्स से छुप के रहती थी) के गर्भ से बदल दिया । जब आठवां बच्चा होना था तब कन्स को फिर डर लगा तो उसने सोचा कि क्यों न मैं देवकी को ही समाप्त कर दू तो samasya ही ख़त्म हो जाए और उसे मारने लगा तो वसुदेव ने उसे कहा के तू कैसा पाप कर रहा है पापाचारी एक तो तू अपनी बहन को मार रहा है और उस पर गर्भवती । गर्भहत्या करने वाली को नर्क में भी जगह नहीं मिलती तो कन्स फिर रुक गया और दोनों को कैद कर लिया । कैद में ही रात में विष्णु जी चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए और बताया कि मैं ही तुम्हारे गर्भ से आऊंगा । उन्होंने कहा के जब मैं बाल रूप आ जाऊं तो मुझे नंदगाव में जो तुम्हारे मित्र हैं उनके यहाँ छोड़ आना और उनकी पुत्री को ले आना तो वसुदेव ने कहा कि ये होगा कैसे तो उन्होंने कहा के सब हो जायेगा तुम बस वैसे करना जैसा कहा तो उन्होंने वैसे ही किया ।
एक टोकरी में बच्चे को डाल कर ले गए और लड़की को ले आये । सब कुछ हो जाने के बाद कन्स को जब पता लगा कि अथवा बच्चा हो चूका है तो वह उसे मारने के लिए आया तो देवकी उसके पैरों में पद गयी और कहा कि आकाशवाणी तो ये हुई थी कि तुझे लड़का मरेगा और ये तो लड़की है तो इसे क्यों मार रहा है परन्तु वो नहीं माना और उसे मारने के लिए जैसे ही पत्थर पर पटकने लगा वो बच्ची ऊपर उठ गयी और अपने असली रूप (अष्टभुजा दुर्गा) में आ गयी और बोली कि अरे मूर्ख तू मुझे क्या मरेगा तुझे मारने वाला तो पहले ही पैदा हो चुका है, तेरा मरना निश्चित है । ये सुनकर उसने वसुदेव और देवकी को छोड़ दिया । अब

चर्चा:
गन्धर्व वेद

गन्धर्व वेद एक उपवेद हैं जो कि सामवेद का भाग हैं
उपवेद चार होते हैं : आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद

गन्धर्व सृष्टि के स्वरुप में देवताओं से एक स्तर नीचे थे
गन्धर्व देवताओ के यहाँ गायन करते थे(मायावी भी होते थे) और अप्सराये उनकी पत्निया होती थी जो कि नृत्य किया करती थीं । यक्ष जो कि उनसे एक स्तर नीचे होते थे वे किसी कि संपत्ति पर अधिकार कर लेते थे (उदाहरणार्थ: युधिष्ठिर को तालाब से पानी पीने के लिए यक्ष के प्रश्नो का उत्तर देना पड़ा था) गन्धर्व और यक्ष में एक अन्तर यह था कि यक्ष एक स्थान पर अधिकार कर वहीँ तक सीमित रहते थे परन्तु गन्धर्व सब जगह घुमते रहते थे ।


तेज की मात्रा के क्रम में 
देवता
गन्धर्व (चित्ररथ, पुष्पदन्त, तुम्बरू, विश्वावसु)
यक्ष (कुबेर)
राक्षस
दैत्य
दानव
मनुष्य - मनुष्य तप योगादि करके अपने तेज को बढ़ा कर स्तर को ऊपर उठा सकता हैं
जानवर


*नारद जी को तम्बूरा बजाना तुम्बरू ने सिखाया था ।

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