Friday, June 29, 2018

संस्कृत परिचर्चा - 1

संयोजक: अभिनन्दन शर्मा


Day 1
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श्लोक:   अखण्ड-मण्डलाकारम् व्याप्तम् येन चराचरम्।
              तत्पदम् दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

अर्थ: मण्डल के आकार का संसार जिनके द्वारा व्याप्त है, सभी अचर और चर से, उनके चरण जिनके द्वारा दिखाए गए, उन श्री गुरु को मैं नमस्कार करता हु ।

मण्डल = गोल,
कमंडल = हाथ में पकड़ा जाने वाला गोल बर्तन

सुभाषित: विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषाम् परपीडनाय ।
               खलस्य साधोर्विपरीतमेतद ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।।

अर्थ:  दुष्ट स्वभाव वाले विद्या विवाद करने के लिए, धन अहंकार के लिए और शक्ति दूसरो को दुःख देने के लिए प्रयोग करते हैं  परन्तु इसके विपरीत साधु जन इनका प्रयोग ज्ञान, दान और रक्षा के लिए करते हैं ।


जीवों का वर्गीकरण
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१. अण्डज - अण्डे से पैदा होने वाले ।
२. जरायुज - गर्भ से पैदा होने वाले ।
३. स्वेदज - पसीने से पैदा होने वाले ।
४. उद्धिज - जो जड़ रहते हैं ।


मनुष्य २५ विभिन्न तत्वों से मिलकर बना है

५ महाभूत - पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, अग्नि
५ तन्मात्रा - गन्ध, रस,रूप,  स्पर्श, शब्द
५ ज्ञानेन्द्रियाँ - नाक, जीभ, आँख, त्वचा कान
५ कर्मेन्द्रियाँ - हाथ, पैर, उपस्थ, मुंह, लिंग
५ अन्तः करण - मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आत्मा

*सभी पांच महाभूतों की तन्मात्रा होती हैं जो ज्ञानेन्द्रियों में रहती हैं

कथा:
सनक, सनातन, सनन्दन और सनत कुमार ।  ये सभी ब्रह्मा जी के मानस(मन से उत्पन्न होने वाले) पुत्र थे । इन सभी ने अपने पिता ब्रह्मा की इच्छा के विरुद्ध आजीवन ब्रह्मचर्य धारण किया और सभी जगह साथ में विचरते थे । एक बार वे विचरते हुए वैकुण्ठ (विष्णु जी के स्थान) पहुंचे परन्तु बच्चो वाली काया और शरीर पर कोई कपड़ा न होने के कारण द्वारपाल (जय और विजय) उन पर हंसने लगे तथा उन्हें वहीँ रोक दिया और आगे नहीं जाने दिया । द्वारपालों के इस व्यवहार से सभी ब्राह्मण क्रुद्ध हो गए और द्वारपालों को पृथ्वी पर ३ बार एक दुर्जन के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया । जब विष्णु जी को इसके बारे में पता लगा तो उन्होंने कुमारो को दर्शन दिए द्वारपालों को क्षमा करने के लिए कहा । कुमारो ने कहा की जय और विजय को जन्म तो लेना ही होगा परन्तु उनकी मुक्ति हर बार विष्णु जी के द्वारा होगी ।

वे दोनों द्वारपाल सतयुग में असुर रूप में ऋषि कश्यप और दिति के यहाँ हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप नाम से हुए । भगवान् विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष और नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप का वध किया ।

त्रेता युग में वे दोनों रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्मे, जिनको श्री राम ने मुक्ति दिलाई, जैसा की रामायण में है और अंत में वे दोनों द्वापर युग में शिशुपाल और दन्तवक्त्र के रूप में जन्मे और श्री कृष्ण के समसामयिक थे ।

#sanskritik_satsang

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