Saturday, July 28, 2018

संस्कृत परिचर्चा - 5

संयोजक: अभिनन्दन शर्मा


Day 5
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श्लोक:
ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।।

अर्थ : 
ब्रह्मा, मुरारी, त्रिपुरान्तकारी, सूर्य, चंद्र, मङ्गल और बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु - मेरी सुबह को सफल बनाएं ।

मुरारी(मुर + अरी) - मुर दैत्य के शत्रु या मुर दैत्य को मारने वाले यानी श्री कृष्ण(विष्णु) ।
त्रिपुरान्तकारी - त्रिपुर दैत्यों (तारकासुर के पुत्र - तारकाक्ष, कमलाक्ष, विद्युन्माली, ) को मारने वाले
तारकासुर के तीन पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके तीन राज्य और अमरता का वरदान माँगा जिसे देने से ब्रह्मा ने मन कर दिया और कुछ और मांगने के लिए कहा । तब उन्होंने अपने मरने की एक कठिन शर्त के साथ तीन राज्य मांगे तो ब्रह्मा जी ने मय दानव से तीन पुर बनवाये । तारकाक्ष को सोने की पुरी, कमलाक्ष को चांदी की पुरी और विद्युन्माली को लोहे की पुरी बना कर दी जो की ग्रह(सम्भवतया एक ग्रह और बाकी दो उसके उपग्रह) थे । ये तीनो ग्रह १००० साल में एक बार सीध में आते थे ।

भूमिसुत - भूमि का पुत्र यानी मङ्गल ।
गुरु - राक्षसों के गुरु यानी बृहस्पति ।
राहु और केतु - ये दोनों ग्रह न होकर पृथ्वी की कक्षा को चन्द्रमा की कक्षा से काटने वाले दो बिंदु(ascending node और descending  node) हैं । समुद्र मन्थन के बाद जब धन्वन्तरि अमृत के साथ बाहर आये तो देवता और राक्षस दोनों ने अमृत के लिए झगड़ा किया तब विष्णु जी मोहिनी का रूप लेकर राक्षसों से अमृत को बचने आये परन्तु एक राक्षस को इस बात का पता लग गया और अमृत पीने के लिए वह सूर्य और चन्द्र के बीच में आकर बैठ गया । देवताओ को इसके बारे में पता लग गया तो विष्णु जी ने सुदर्शन से उसके दो टुकड़े कर दिए परन्तु तक तक वह अमृत पी चुका था और तब से राहु(सिर) सूर्य का और केतु(धड़) चन्द्र ग्रहण का कारण बनता है ।


सुभाषित:
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ।।

अर्थ :
शील(शुद्ध या अच्छे) चरित्र वाले और वृद्धों की सेवा करने वाले की आयु, विद्या, यश और बल, इन चारों की वृद्धि होती है ।

शरीर में दो तरह के आवेश(charge) होते हैं, तेज (धनावेश) और आवेश (ऋणावेश) ।  जब अर्जुन और अश्वत्थामा ने अपने अपने ब्रह्मास्त्र चलाये तो नारद जी और ब्रह्मा जी ने उन्हें रोक लिया और दोनों को ब्रह्मास्त्र वापस लेने के लिए कहा तब अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया परन्तु अश्वत्थामा ऐसा नहीं कर सका क्यूंकि उसमे तेज नहीं था । इसी तरह हम सभी में तेज और आवेश होता है जो की दुसरे को छूने से स्थानांतरित  होता है । आवेश यानी ऊर्जा अधिक से काम की तरफ बहती है तो जब हम आशीर्वाद लेने के लिए झुकते हैं और पैरो को छूते हैं तो तेज आपमें स्थानांतरित होता है और यही धनावेश या तेज का अर्जन, आयु, विद्या,यश और बल वृद्धि का कारण बनता है ।

 पेड़ पौधे तेज अर्जित करते हैं परन्तु उसे व्यय नहीं कर सकते और तेज परिपूर्ण रहते हैं इसीलिए बरगद के वृक्ष की परिक्रमा के लिए कहा जाता है जिससे तेज आशीर्वाद रूप मिलता है क्योंकि बरगद का वृक्ष छाया, ठंडी हवा, विभिन्न पक्षियों और जीवों (चींटिया तथा अन्य कीड़े) को आसरा देता है ।

कथा:
भीम और दुर्योधन का युद्ध

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद दुर्योधन सरोवर में जाकर छुप गया तब कृष्ण ने कहा के दुर्योधन को मारे बिना जीत नहीं मानी जाएगी तो  पाण्डव दुर्योधन के पास गए पर दुर्योधन ने कहा के मैं थका हुआ हूँ सो तुमको आपने राज सौंपता हूँ तो युधिष्ठिर बोले के वो राज तो अब तुम्हारा है ही नहीं तो तुम हमें क्या दे रहे हो । जब दुर्योधन ने बाहर आने से मना कर दिया तो युधिष्ठिर बोले के तुम चाहे किसी भी एक  पाण्डव से लड़ सकते हो और अगर जीते तो जीत तुम्हारी हुई । इस पर दुर्योधन बाहर आ गया लड़ने के लिए परन्तु कृष्ण, युधिष्ठिर पर बहुत रुष्ट हुए क्योंकि कोई भी पाण्डव अकेला दुर्योधन से नहीं जीत सकता था । दुर्योधन ने बारह साल भीम की मूर्ति बना कर गदा युद्धाभ्यास किया था जबकि भीम अधिक ताकतवर होते हुए भी वनवास के कारण अभ्यासहीन थे ।

कृष्ण ने देखा की दुर्योधन से गदायुद्ध में भीम के अलावा और कोई टक्कर नहीं ले सकता तो कृष्ण ने भीम को ही आगे करवा दिया । भीम एक मारता तो दुर्योधन तीन मारता और भीम को लहूलुहान कर दिया । तभी कृष्ण ने इशारा करके भीम को दुर्योधन की जांघ पे मरने के लिए कहा और भीम के मारते ही दुर्योधन गिर पड़ा । भीम,  दुर्योधन के गिरते ही उसके मुँह पर पैर रखने लगा तो युधिठिर ने उसे रोक दिया और कहा के वो तुम्हारा बड़ा भाई है और बड़ा भाई पिता की तरह होता है और दुर्योधन को उसके कर्मो के लिए क्षमा किया । छल होता देख बलराम जो की दुर्योधन के गुरु भी थे, हल लेकर भीम को मारने दौड़ पड़े । कोई भी पाण्डव उन पर हाथ नहीं डाल सकता था तो कृष्ण ने उन्हें रोका और पाण्डवों के साथ दुर्योधन के किये हुए छल (पाण्डवों को वनवास देना, द्रौपदी के चीर हरण, अभिमन्यु वध के) बताये जिसके बाद बलराम गुस्से में भीम को यह कहते हुए चले गए के भीम तू नर्कगामी होगा और दुर्योधन अधम होते हुए भी स्वर्ग में जायेगा ।

अन्त समय में सभी पाण्डव मरते चले गए और केवल युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग पहुंचे और देखा की सभी कौरव वह उपस्थित हैं परन्तु सभी पाण्डव नर्क में हैं । यमराज से पूछने पर उन्होंने कहा के कौरवो ने क्षत्रियोचित कर्म किया और स्वर्ग को प्राप्त हुए हैं जबकि पाण्डव युद्ध में नहीं मरे और अपने कर्मो का फल भोगने के लिए नर्क में है जिसके बाद वे भी स्वर्ग में आ जायेंगे ।

निष्कर्ष: आपके कर्म आपके साथ हमेशा रहते हैं । भगवान् से डरो या मत डरो पर अपने कर्मो से जरूर डरो ।

चर्चा:
गन्धर्व वेद - २

स्वर तंत्र - हवा -> स्वर नली ->

स्वर - जो आवाज बिना रुकावट के बाहर आती है वे स्वर कहलाते हैं
अनुस्वार (व्यंजन) - जिनके अन्त में स्वर हो (क - क्+अ; ख - ख्+अ आदि)
अनुनासिक - नाक से बोले जाने वाले ( ङ्, ञ्, ण्, न्, म् )

गीत शब्द-प्रधान होते हैं जबकि राग स्वर-प्रधान होते हैं
शब्द प्रधान - जिसमे शब्द बोले जाते हैं (आधुनिक गाने, RAP)।
स्वर प्रधान - जिनमे केवल स्वर बोले जाते हैं और कोई शब्द नहीं होता (शास्त्रीय संगीत)

भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र, मतंग मुनि ने बृहद्देशी, सारङ्गदेव ने शब्दरत्नाकर लिखा ।

सुर-सप्तक

षडज (सा) - मोर जैसी आवाज
ऋषभ (रे) - बैल जैसी आवाज
गन्धार (ग) - बकरी
मध्यम (म) - कबूतर
पञ्चम (प) - कोयल
धैवर (ध) - घोड़ा
निषाद (नि) - हाथी का चिंघाड़ना

सप्तक तीन प्रकार के होते हैं:-
मन्द सप्तक (सबसे निचला सुर)
मध्यम सप्तक
तार सप्तक (सबसे ऊंचा सुर)

आरोह (नीचे से ऊपर के सुर की तरफ बोलना)
अवरोह (ऊपर से नीचे के सुर की तरफ बोलना)

स्वर लिपि -

उदात्त: शुद्ध स्वर (मन्द सप्तक) - जो शब्द अपने प्राकृतिक रूप में ही लिखे हों ।
उदाहरण: सा रे ग म

अनुदात्त: मन्द सप्तक ( ) - लिखे हुए अक्षरके नीचे एक रेखा
उदाहरण:  अ॒, रा॒, ब॒र्हिरा॒सदे

स्वरित: तार सप्तक का मध्यम या तीव्र मध्यम ( Ꞌ )- लिखे हुए अक्षर के ऊपर एक खड़ी रेखा ।
उदाहरण:  स्य॑, रा॑, देव॑बर्हि॒र्मा

दीर्घ स्वरित ( ꞋꞋ ): लिखे हुए अक्षर के ऊपर दो खड़ी रेखाएं।
उदाहरण: नां᳚

विराम(•)

सा -, रे --, गए --- : जितनी बार निशान हो उतनी बार बोला जायेगा ।

एक ही मात्रा में बोले जाने वाले  ( ͜   ) : ͜रे

अवग्रह ( ऽ ) : इसका प्रयोग संधि-विशेष के कारण विलुप्त हुए 'अ' को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।
उदाहरण: बालकः+अयम्= बालको+अयम्=बालकोऽयम्।

काऽन्हा तोऽरि बाँऽसुरियाऽꞋ'

    

ध  - तार सप्तक

मन्द सप्तक

   

दण्डवत - डण्डे के जैसा यानी डण्डे की भांति बिना झुके गिर जाना ।
शाष्टांग प्रणाम - इसमें सिर, हाथ, पैर, हृदय, आँख, जाँघ, वचन और मन इन आठों से युक्त होकर और जमीन पर सीधा लेटा जाता है।




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