।।दुहो।।
पारवति पति अति प्रबल, विमल सदा नरवेश।
नंदि संग उमंग नीत, समरत जेहि गुन शेष।।
।।छंद त्रिभंगी।।
समरत जेहि शेषा, दिपत सुरेशा, पुत्र गुणेशा, निज प्यारा।
ब्रह्मांड प्रवेशा, प्रसिध्ध परेशा, अजर उमेशा, उघ्धारा।।
बेहद नरवेसा, क्रत सिर केशा, टलत अशेषा, अधरेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।1।।
समरत जेहि शेषा, दिपत सुरेशा, पुत्र गुणेशा, निज प्यारा।
ब्रह्मांड प्रवेशा, प्रसिध्ध परेशा, अजर उमेशा, उघ्धारा।।
बेहद नरवेसा, क्रत सिर केशा, टलत अशेषा, अधरेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।1।।
भक्तन थट भारी, हलक हजारी, कनक अहारी, सुखकारी।
सिर गंग सुंधारी, द्रढ ब्रह्मचारी, हरदुख हारी, त्रिपुरारी।।
रहे ध्यान खुमारी, ब्रह्म विहारी, गिरजा प्यारी, जोगेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।2।।
सिर गंग सुंधारी, द्रढ ब्रह्मचारी, हरदुख हारी, त्रिपुरारी।।
रहे ध्यान खुमारी, ब्रह्म विहारी, गिरजा प्यारी, जोगेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।2।।
कैलाश निवासी, जोग अध्यासी, रिध्धि सिध्धि दासी, प्रति कासी।
चित व्योम विलासी, हित जुत हासी, रटत प्रकासी, सुखरासी।।
मुनि सहस्त्र अठयासी, कहि अविनासी, जेही दुख त्रासी, उपदेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।3।।
चित व्योम विलासी, हित जुत हासी, रटत प्रकासी, सुखरासी।।
मुनि सहस्त्र अठयासी, कहि अविनासी, जेही दुख त्रासी, उपदेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।3।।
गौरीनीत संगा, अति सुभ अंगा, हार भुजंगा, सिर गंगा।
रहवत निज रंगा, उठत अवंगा, ज्ञान तरंगा, अति चंगा।।
उर होत उमंगा, जयक्रत जंगा, अचल अभंगा, आवेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेसा, मगन हमेसा, माहेशा।।4।।
रहवत निज रंगा, उठत अवंगा, ज्ञान तरंगा, अति चंगा।।
उर होत उमंगा, जयक्रत जंगा, अचल अभंगा, आवेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेसा, मगन हमेसा, माहेशा।।4।।
नाचंत नि:शंका, मृगमद पंका, घमघम घमका, घुघरू का।
ढोलु का धमका, होव हमका, डम डम डमका, डमरु का।।
रणतुर रणंका, भेर भणंका, गगन झणंका, गहरेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा माहेशा।।5।।
ढोलु का धमका, होव हमका, डम डम डमका, डमरु का।।
रणतुर रणंका, भेर भणंका, गगन झणंका, गहरेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा माहेशा।।5।।
मणिधर गल माळा, भुप भुजाळा, शिश जटाळा, चरिताळा।
जगभुल प्रजाळा, शुळ हथाळा, जन प्रतिपाळा, जोराळा।।
दंग तुतिय कराळा, हार कुणाळा, रहत कपाळा, राकेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।6।।
जगभुल प्रजाळा, शुळ हथाळा, जन प्रतिपाळा, जोराळा।।
दंग तुतिय कराळा, हार कुणाळा, रहत कपाळा, राकेशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।6।।
खळकत शिर निरा, अदल अमिरा, पिरन पिरा, हर पिरा।
विहरत संग विरा, ध्यावत धीरा, गौर सरीरा, गंभीरा।।
दातार रधिरा, जहाज बुध्धिरा, कांत सिध्धिरा, शिर केशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।7।।
विहरत संग विरा, ध्यावत धीरा, गौर सरीरा, गंभीरा।।
दातार रधिरा, जहाज बुध्धिरा, कांत सिध्धिरा, शिर केशा।
जयदेव सिध्धेशा, हरन कलेशा, मगन हमेशा, माहेशा।।7।।
नररुप बनाया, अकळ अमाया, कायम काया, जगराया।
तनकाम जलाया, साब सुहाया, मुनिउर लाया, मनभाया।।
सिध्धेसर छाया, जनसुख पाया, मुनि ब्रह्म गाया, गुण लेशा।
जयदेव सिध्धेशा हरन कलेशा, मगन हमेशा माहेशा।।8।।
तनकाम जलाया, साब सुहाया, मुनिउर लाया, मनभाया।।
सिध्धेसर छाया, जनसुख पाया, मुनि ब्रह्म गाया, गुण लेशा।
जयदेव सिध्धेशा हरन कलेशा, मगन हमेशा माहेशा।।8।।
।।छप्पय।।
जय जय देव सिध्धेश, शेष निश दिन गुण गावे।
दरश परस दुखदुर, सुरजन अंतर लावे।।
अणभय अकळ अपार, सार सुंदर जग स्वामी।
अगणित कीन उध्धार, नार नर चेतन धामी।।
नररूप मुर्ति नवल, नहि शंख्या जेहि नाम की।
कहे ब्रह्म मुनि बलिहारी मे, शिध्धेशर जग सामकी।।
जय जय देव सिध्धेश, शेष निश दिन गुण गावे।
दरश परस दुखदुर, सुरजन अंतर लावे।।
अणभय अकळ अपार, सार सुंदर जग स्वामी।
अगणित कीन उध्धार, नार नर चेतन धामी।।
नररूप मुर्ति नवल, नहि शंख्या जेहि नाम की।
कहे ब्रह्म मुनि बलिहारी मे, शिध्धेशर जग सामकी।।
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