Wednesday, January 16, 2019

श्री राम स्तुति


श्रीराम चन्द्र कृपालु 


श्री राम चन्द्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर। वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है। उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है, मुख कमल के समान है, हाथ (कर) कमल के समान हैं और चरण (पद) भी कमल के समान हैं ।

दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible)

कन्दर्प अगणित अमित छवी नव नील जलद सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है, उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है, पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है, ऐसे पावनरूप  जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ ।

कन्दर्प: कामदेव

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले, रघु के प्यारे, आनन्द से भरे बादल, कौशल्या के चाँद और दशरथ-नन्दन श्रीराम का भजन कर ।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर-चापधर सङ्ग्राम जित खर-दूषणं।। 

जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है, जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है ।

शर-चाप: बाण-धनुष

इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मन रञ्जनम्। 
मम ह्रदय कुञ्ज निवास कुरु कामादी खल दल गञ्जनम्।।

तुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल में सदा निवास करें जो कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओं का नाश करने वाले हैं ।

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही वर (श्रीरामचन्द्रजी) तुमको मिलेगा वह स्वभाव से सहज, सुन्दर और सांवला है वह करुणा निधान (दया का खजाना), सुजान (सर्वज्ञ, सब जाननेवाला), शीलवान है, तुम्हारे स्नेह को जानता है ।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर (इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई) तुलसीदासजी कहते है, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली।

॥ सियावर रामचंद्र की जय ॥

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