पानियम् पातुमिच्छामि त्वत्तः कमललोचने |
यदि दास्यसि नेच्छामि न दास्यसि पिबाम्यहम् ||
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हे कमलनैन ! मुझे तुमसे पानी पीने की इच्छा है |
1--अगर तुम पानी देती हो तो मुझे नहीं चाहिए, यदि नहीं देती तो मैं पी लूंगा |
2 --यदि तुम दासी हो तो मुझे पानी नहीं चाहिए, यदि नहीं हो तो पी लूंगा |
दास्यसि - तुम देती हो |
दास्यसि --> दासी + असि - तुम दासी हो
O lotus eyed one! I want to have a drink from you.
If you give it to me, I don't want it;
If you don't give it to me, I will drink it.
OR, the last line can be translated to.......
If you are a servant, I don't want it;
If you are not a servant, I will drink it.
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हनूमति हतारामे वानराः हर्षनिर्भराः ।
रुदन्ति राक्षसाः सर्वे हा हारामो हतो हतः ॥
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जब हनुमान ने राम को मारा, वानर प्रफुल्लित हुए,
सभी राक्षस रोये और चिल्लाये, हा! हा! राम मारे गए |
Translation:
When Hanuman killed Rama, the monkeys were full of delight.
All the rakshasas wept and exclaimed, Alas! Alas! Rama has been killed.
हताराम: = हत् + आराम:(बगीचा)
हतारामे ---> बगीचा ध्वस्त किया
पुन:
जब हनुमान ने वाटिका को उजाड़ दिया तो वानर प्रफुल्लित हुए,
सभी राक्षस रोये और चिल्लाये, हा! हा! अशोक वाटिका नष्ट हो गयी |
Another translation:
When Hanuman destroyed the pleasure-garden, the monkeys were full of delight. All the rakshasas wept and exclaimed, alas! Alas! The pleasure-garden has been destroyed.
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केशवं पतितं दृष्ट्वा द्रोण हर्षमुपादयत।
कौरवाः सर्वे रुदन्ति हा! हा! केशव केशवः॥
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कहते हैं कि व्यास के इस कथन पर स्वयं गणेशजी भी सोच में पड़ गये थे। सम्पूर्ण महाभारत में कृष्ण तो कहीं गिरे नहीं और अगर कहीं गिर भी गये हों तो कृष्ण को गिरते देखकर द्रोण हर्ष से क्यों उछल पड़ेंगे? और तो और शत्रु पक्ष के दुष्ट कौरव हा! हा ! केशव! केशव! कर के क्यों रोयेंगे...?
किन्तु यहाँ केशव का अर्थ है जल में लाश (के (जले) शवं), द्रोण का अर्थ है कौव्वा और कौरव का अर्थ है सियार। अब श्लोक का अर्थ लगाइये। यह महाभारत युद्ध की विभीषिका का वर्णन है। एक दिन में इतनी लाशें गिरती थी कि जलाने या दफ़नाने की जगह ना फ़ुर्सत। लाशों को पानी में बहा दिया जाता था। कौव्वे खुशी के मारे उछल पड़ते थे कि वाह ! अब तो महीनों लाश के उपर बैठ कर मांस खाते रहेंगे। लेकिन एक और मांसाहारी सियार को तैरना तो आता नहीं है... सो वह पानी में लाश को देखता है पर खा नहीं सकता इसीलिये अपना कलेजा पीटता है... हा!..हा...! पानी में लाश ! पानी में लाश ! (काश जमीन पर होता तो सालों तक खाते)
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यस्य षष्ठी चतुर्थी च विहस्य च विहाय च ।
अहं कथं द्वितीया स्यात् द्वितीया स्यामहं कथम् ।।
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विहस्य = after laughing
विहाय = after forsaking
Story:
There were two friends. One was wise but poor. He had a daughter, who was also smart, intelligent and was also beautiful. The other person, was rich but had no intellectual acclaim. He had a son, who also had no wisdom of letters. The rich person caught the fancy to have his wise but poor friend’s daughter as his daughter-in-law.
He did make the proposal to the poor wise man.
विहस्य = after laughing
विहाय = after forsaking
Story:
There were two friends. One was wise but poor. He had a daughter, who was also smart, intelligent and was also beautiful. The other person, was rich but had no intellectual acclaim. He had a son, who also had no wisdom of letters. The rich person caught the fancy to have his wise but poor friend’s daughter as his daughter-in-law.
He did make the proposal to the poor wise man.
Poor wise man knew that his daughter will not be happy by marrying the dim-witted son of his rich but uneducated friend.
But he was also worried of saying no to his rich friend’s proposal.
On knowing her father’s anxiety, she said there was a simple way out. Can you tell uncle, that I have a simple condition for accepting the proposal ? I am stuck up at deciphering the meaning of a simple verse. If the son can help me, I can consider the proposal.
Actually she composed a verse herself. This was the verse.
दो मित्र थे | एक विद्वान परन्तु गरीब था, उसकी एक बेटी थी जो कि बहुत विदुषी और सुन्दर थी | दूसरा बहुत धनी था परन्तु वह विद्वान नहीं था, उसका एक पुत्र भी था जो उसी कि तरह अक्षरशत्रु था | धनिक ने अपने विद्वान मित्र की विदुषी और सुन्दर कन्या को अपनी बहू बनाने का निश्चय किया | धनिक मित्र ने यह प्रस्ताव अपने दरिद्र मित्र के समक्ष प्रस्तुत किया | दरिद्र विद्वान मित्र यह जानता था की उसकी पुत्री, धनी परन्तु मूढ़ के अक्षरशत्रु पुत्र से विवाह के लिए तैयार नहीं होगी परन्तु वह अपने मित्र के प्रस्ताव को इन्कार नहीं करना चाहता था | अपने पिता की चिंता जानकार कन्या को इसका एक सरल उपाय सूझा | उसने अपने पिता से कहा "अपने मित्र से कहिये कि विवाह के लिए मेरी एक आसान सी शर्त है | मैं एक श्लोक का अर्थ करने पर अटकी हुई हू, अगर उनका पुत्र श्लोक का अर्थ कर दे तो मैं उससे विवाह कर लूंगी" |
असल में कन्या ने श्लोक स्वयं बनाया | जो कि इस तरह है :
यस्य विहस्य(शब्दे) षष्ठी च विहाय(शब्दे) चतुर्थी च (भवति) ।
- जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति और "विहाय" चौथी विभक्ति का है
- One for whom word विहस्य is of sixth case and word विहाय is of fourth case.
कथम् अहं(शब्दे) द्वितीया च स्यात् |
- "अहम् और कथम्"(शब्द) दूसरी विभक्ति से हो सकता है |
- the word अहं (ever) कथम् be of second case.
कथम् अहम् (तस्य) द्वितीया स्याम् |
- मैं ऐसे व्यक्ति कि पत्नी(द्वितीया) कैसे हो सकती हू ?
- How can I be a wife of such person ?
(Note, alternate meaning of द्वितीया is wife.)
*************
Is it not interesting that a dim-witted may think word विहस्य is of sixth case and word विहाय is of fourth case, simply because they have suffix-like endings of स्य and अय as in देवस्य and देवाय ?
A dim-witted may as well think the word अहम् to be of second case, simply because the word has suffix-like ending of म् as in देवम् ! He may even think the word कथम् to be of second case !!
It is also interesting to think how and why alternate meaning of द्वितीया is wife. Meaning of द्वितीया is not just “second” as in द्वितीयोऽध्यायः. The word also means “next (to)”. A lady “next to” a person would be his wife. That is how the word द्वितीया has this alternate meaning of द्वितीया = wife.
But he was also worried of saying no to his rich friend’s proposal.
On knowing her father’s anxiety, she said there was a simple way out. Can you tell uncle, that I have a simple condition for accepting the proposal ? I am stuck up at deciphering the meaning of a simple verse. If the son can help me, I can consider the proposal.
Actually she composed a verse herself. This was the verse.
दो मित्र थे | एक विद्वान परन्तु गरीब था, उसकी एक बेटी थी जो कि बहुत विदुषी और सुन्दर थी | दूसरा बहुत धनी था परन्तु वह विद्वान नहीं था, उसका एक पुत्र भी था जो उसी कि तरह अक्षरशत्रु था | धनिक ने अपने विद्वान मित्र की विदुषी और सुन्दर कन्या को अपनी बहू बनाने का निश्चय किया | धनिक मित्र ने यह प्रस्ताव अपने दरिद्र मित्र के समक्ष प्रस्तुत किया | दरिद्र विद्वान मित्र यह जानता था की उसकी पुत्री, धनी परन्तु मूढ़ के अक्षरशत्रु पुत्र से विवाह के लिए तैयार नहीं होगी परन्तु वह अपने मित्र के प्रस्ताव को इन्कार नहीं करना चाहता था | अपने पिता की चिंता जानकार कन्या को इसका एक सरल उपाय सूझा | उसने अपने पिता से कहा "अपने मित्र से कहिये कि विवाह के लिए मेरी एक आसान सी शर्त है | मैं एक श्लोक का अर्थ करने पर अटकी हुई हू, अगर उनका पुत्र श्लोक का अर्थ कर दे तो मैं उससे विवाह कर लूंगी" |
असल में कन्या ने श्लोक स्वयं बनाया | जो कि इस तरह है :
यस्य विहस्य(शब्दे) षष्ठी च विहाय(शब्दे) चतुर्थी च (भवति) ।
- जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति और "विहाय" चौथी विभक्ति का है
- One for whom word विहस्य is of sixth case and word विहाय is of fourth case.
कथम् अहं(शब्दे) द्वितीया च स्यात् |
- "अहम् और कथम्"(शब्द) दूसरी विभक्ति से हो सकता है |
- the word अहं (ever) कथम् be of second case.
कथम् अहम् (तस्य) द्वितीया स्याम् |
- मैं ऐसे व्यक्ति कि पत्नी(द्वितीया) कैसे हो सकती हू ?
- How can I be a wife of such person ?
(Note, alternate meaning of द्वितीया is wife.)
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Is it not interesting that a dim-witted may think word विहस्य is of sixth case and word विहाय is of fourth case, simply because they have suffix-like endings of स्य and अय as in देवस्य and देवाय ?
A dim-witted may as well think the word अहम् to be of second case, simply because the word has suffix-like ending of म् as in देवम् ! He may even think the word कथम् to be of second case !!
It is also interesting to think how and why alternate meaning of द्वितीया is wife. Meaning of द्वितीया is not just “second” as in द्वितीयोऽध्यायः. The word also means “next (to)”. A lady “next to” a person would be his wife. That is how the word द्वितीया has this alternate meaning of द्वितीया = wife.
2 comments:
नमस्ते,
प्रहेलिकाएँ अच्छी हैं। विवरण के साथ पढकर अच्छा लगा।
प्रहेलिकाओं के संख्या दें, और यदि प्राप्ति स्थान अथवा उट्टङ्कित किया हुआ मूल पुस्तक का आधार भी मिल जाए तो लिख दीजिएगा।
यदि हर श्लोक के अलग अलग शब्दों को प्रतिपदार्थ तात्पर्य के साथ समझा देंगे तो संस्कृत मूल का यथातथ आनन्द भी प्राप्त होसकेगा।
आप यदि श्लोक व उनका विवरण अलग अलग रंगों मे रखेंगे तो पढने में आसानी होगी। और लिपि अक्षरों को थोडा बडा छोटा करके भी अलग दिखाया जा सकता है। अच्छा प्रयास है। सुन्दर ब्लाग है।
-उषा
अति उत्तम संकलन! कृपया और प्रहेलिकाएँ प्रकाशित करें। इतनी से मन नहीं भरा :-)
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