Wednesday, June 13, 2018

रोचक संस्कृत - १

Sanskirt tidbit - 1

अहम् युष्माकम् अध्यापकः अस्मि।
Aham yushmaakam adhyapakah naa asmi |

युष्माकम् अध्यापिका रोहिणी अस्ति।
Yushmaakam adhyapika rohini asti |


I don’t possess the skills to teach you Sanskrit.  My learning of Sanskrit is entirely self-taught. There is nothing formal about it.  In any formal learning process, there are steps one takes – speaking, reading and then writing.  That’s not the way it works in an informal learning process.  My reading skills are very good, speaking average and writing isn’t that good.  Therefore, I make mistakes in writing and do point them out.  There may be some, not just typos.  I am also in a process of learning.  It is just that I am a bit more advanced than most of you.

However, I do deliver talks on persuading people to learn Sanskrit, popularize the language.  Don’t mistake them for lessons on Sanskrit.  They are only meant to generate interest and trigger the process of learning.  These are typically extempore talks, so there are no hand-outs and written texts.  But I use little tidbits to make people interested.  In this series, I will share some of those tidbits with you.  Hope that helps you and adds in some way to what Rohini is doing.  I will try to keep pace with what you are learning, so that I do not get too far ahead of you.  But to tease you, I may put in a few concepts that you aren’t familiar with yet.  No one reads anything that is too long.  None of these will therefore be more than 1000 words, perhaps shorter.  I am not sure about frequency.  Let’s plan for once a week.  And do send me suggestions on what such future tidbits can be on.

Bhaskaracharya was a famous Indian mathematician and astronomer (1114-1185).  He is also known as Bhaskara-II.  Leelavati is both the name of a text (actually part of a text) that he wrote and Leelavati is also believed to have been the name of his daughter.  Many of the problems are addressed to Leelavati and Leelavati also seems to have composed some of them.



इन्द्र: वायुर्यमश्चैव नैरृतो मध्यमस्तथा

Indrah vaayuryamashchaiva nairrto madhyamastathaa |

ईशानश्च कुबेरश्च अग्निर्वरुण एव
Ishaanashcha kuberashcha agnirvarun aiv cha ||

The one given above is one such, composed by Leelavati.  When one learns Sanskrit, there is a problem.  Words spill over into one another, following the rules of grammar.  Because one doesn’t know how to break them up, one can’t understand.  Once you learn how to break things up, it becomes simpler.  Let me break up the one given above.


इन्द्रो वायु: यम: एव नैरृतः  मध्यम: तथा

indro vayuh yamah cha aiv nairrteh madhyamah tathaa |

ईशान: कुबेर: अग्नि: वरुण: एव

ishaanah cha kuberah cha agnihi varunah aiv cha ||


So far, so good.  But I couldn’t figure this one out.  Why was this important enough to be written down in the form of a shloka?  It is just the names of various gods.  Actually, not just any gods.  This gives the names of lokapalas.  Lokapalas are protectors or guardians of the world.  There are 10 directions.  If you leave out above and below, there are 8.  These are north, north-east, east, south-east, south, south-west, west and north-west.  North, south, east and west have specific Sanskrit names as directions.  But we will place that on hold.  Look at the matrix below.  Vayu is the guardian of the north-west, Kubera of the north, Ishana of the north-east, Indra of the east, Agni of the south-east, Yama of the south, Nairrita of the south-west and Varuna of the west.  You get the idea.  It is because Yama, the lord of the death, is the guardian of the south that there is a belief that you should not sleep with your feet pointing towards the south.  You will offend Yama.




But what’s the point of the shloka?  Why write out a shloka that only lists the names of the lokapalas?  We know their names.  Wait.  Now follow the order listed by Leelavati, Indra is the first, Vayu is the second, Yama is the third and so on.  Madhyama means middle, there is no guardian there.  Fill in the matrix below in the order in which Leelavati has listed the names.


2     7     6

9     5     1

4     3     8



Notice anything about this?  It is a 3X3 magic square, with the sums along all rows, all columns and all diagonals adding up to 15.  So that’s what she was doing.  She wasn’t writing down any odd shloka, she was actually constructing a magic square.  Interesting?  Sanskrit literature (I am using the word literature in a very broad sense) is littered with such nuggets.  If we don’t learn and read Sanskrit, all this will be lost.

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मैं आपको संस्कृत नहीं सिखा सकता । मेरी संस्कृत पूर्णतया स्वयं शिक्षित है और कुछ भी औपचारिक नहीं । औपचारिक शिक्षा में आप बोलते हैं, लिखते हैं और फिर पढ़ते हैं । परन्तु अनौपचारिक शिक्षा में ऐसे नहीं होता । मेरी संस्कृत की लिखाई बहुत अच्छी नहीं, बोलने में ठीक ठाक है और पढ़ने का कौशल अच्छा है । मैं संस्कृत लेखन में गलतियां करता रहता हूँ और उन्हें सुधारता भी हूँ । मैं भी संस्कृत सीख ही रहा हूँ, केवल इतना ही अंतर है की संस्कृत बाकी लोगों से थोड़ा ज्यादा जनता हूँ ।

यूँ तो मैं भाषण देता हूँ ताकि लोग संस्कृत सीखने, पढ़ने की प्रेरणा लें और संस्कृत का प्रसार हो परन्तु भाषणों को संस्कृत अध्ययन न समझें । भाषण केवल संस्कृत पढ़ने की अच्छा जागृत करने और सीखने की प्रक्रिया की शुरुआत करने के लिए हैं । मेरी बातें अधिकतर अनौपचारिक होंगी तो इनमे कोई लिखित सामग्री नहीं होगी । संस्कृत में दिलचस्पी जागृत करने के लिए मैं छोटी छोटी जानकारियों की प्रयोग करूँगा ।

भास्कराचार्य एक प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे(1114-1185) । वह भास्कर-II के नाम से भी जाने जाते हैं । लीलावती उनके एक लेख(वास्तविकता में लेख का एक भाग) का नाम हैं और माना जाता हैं की उनकी पुत्री का नाम भी लीलावती था । बहुत से लेख लीलावती को सम्बोधित करते हुए लिखे गए हैं और परोक्ष रूप से कुछ लीलावती ने ही लिखे हैं ।



इन्द्रवायुर्यमश्चैव नैरृतो मध्यमस्तथा 


ईशानश्च कुबेरश्च अग्निर्वरुण एव  

उपरिलिखित, लीलावती की रचनाओं में से एक है । संस्कृत पढ़ने में एक समस्या आती है कि शब्द, व्याकरण के नियमो के अनुसार, आपस में जुड़े रहते हैं । चूँकि उन शब्दों का संधि-विच्छेद नहीं पता होता तो उन्हें समझा नहीं जा सकता । अगर आप संधि-विच्छेद जान लें तब यह आसान हो जाता है । ऊपर दी गयी रचना को संधि-विच्छेद के साथ देखते हैं 



इन्द्रो वायुयम एव नैरृतः  मध्यमतथा 

ईशान कुबेर अग्निवरुणएव  

अभी तक तो सब सही है परन्तु क्या यह जरूरी है कि इसे एक श्लोक के रूप में ही लिखा जाये ? यह केवल देवताओ के नाम ही तो हैं । असल में, केवल देवताओ के नाम ही नहीं हैं अपितु यह लोकपालों के नाम हैं । लोकपाल दुनिया के रक्षक होते हैं । दिशाएँ १० होती हैं, अगर आकाश और पाताल को छोड़ दें तो ८ दिशाएं होंगी, उत्तर, (उत्तर-पूर्व)ईशान, पूर्व, दक्षिण-पूर्व(अग्नि), दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य), पश्चिम, उत्तर-पश्चिम(वायु) । नीचे दिए गए आव्यूह को देखिये । वायु, उत्तर पश्चिम का , कुबेर उत्तर का, ईशान उत्तर-पूर्व का, इंद्र पूर्व का, अग्नि दक्षिण-पूर्व का, यम दक्षिण का, नैऋत्य दक्षिण-पश्चिम का और वरुण दक्षिण का रक्षक हैं । आप देख सकते हैं कि यम, मृत्यु का देवता, दक्षिण का रक्षक है, इसीलिए यह माना जाता है कि सोते समय पैर दक्षिण में नहीं होने चाहिए, आप यम को क्रोधित कर सकते हैं ।



परन्तु इस श्लोक का मतलब क्या है? केवल लोकपालों के नाम बताने के लिए श्लोक लिखने की क्या आवश्यकता? वो तो हम जानते हैं, पर रुकिए, लीलावती ने इन्हे एक क्रम में लिखा है । पहला इंद्र है, दूसरा वायु, तीसरा यम आदि आदि ... मध्य में कोई रक्षक नहीं है । अब आव्यूह को उसी क्रम में भरिये जैसा लीलावती ने श्लोक में नामों को दिया है ।



2     7     6

9     5     1

4     3     8

क्या इसमें कुछ अलग है? यह एक रोचक ३X३ वर्ग है जिसमे सभी पंक्तियों, स्तम्भों और विकर्णों का योग १५ है । यहाँ लीलावती ने केवल एक श्लोक नहीं लिखा अपितु एक रोचक वर्ग बनाया है । चित्ताकर्षक ? संस्कृत साहित्य ऐसी रोचक जानकारियों से भरा हुआ है । अगर हम संस्कृत नहीं जानते हैं तो आने वाले समय में ये सब खो जायेगा ।


Credit: Shri Bibek Debroy

Content is provided as is without any alteration but with translation in hindi and with minor additions wherever needed.

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