Saturday, June 16, 2018

रोचक संस्कृत - ३

Sanskrit tidbit 3

Some of you may know that I am translating the Mahabharata in unabridged form, from Sanskrit to English.  Some of the action of the Mahabharata takes place in Hastinapura (Hastinaapura), the capital of the Kuru dynasty.  Hastinapura is roughly 40 km away from Meerut.  It is a real place.  There is a belief that the city owed its name to a king named Hasti, but there is another explanation too.  The word “hastin” means elephant.  “Pura” means city.  Therefore, there must have been a lot of elephants in Hastinapura, for the city to have obtained that name.  At the time of the Mahabharata, elephants were used quite a lot, including in the Kurukshetra War.  The word “naga” (naaga) has several meanings and one of these is elephant.  The word “gaja” also means elephant.  “Sahvya” (saahvya) is not a common Sanskrit word. You won’t find it in any of the standard dictionaries.  However, “sahva” means “called” or “named”.  Most people have heard of Hastinapura.  Unless you have read the Mahabharata very carefully, you may not know the Mahabharata also refers to Hastinapura as Nagasahvya and Gajasahvya.  Nagasahvya and Gajasahvya simply meant places named after elephants and the words are synonyms for Hastinapura.  The word “varana” (vaarana) also means elephant and in some rare instances, Hastinapura is also called Varanasahvya.

There is someone named Abhinav Agarwal.  He is a very serious and careful reader of the Mahabharata and that applies to my translation too.  However, he reads it in the English translation, not the Sanskrit.  Abhinav asked me a question.  Why does the Mahabharata refer to Hastinapura as Nagasahvya and Gajasahvya and why does it never refer to the city as Nagapura or Gajapura?  Nagapura and Gajapura are also logical names.  By the way, Abhinav is factually correct.  The words Nagapura and Gajapura are never used.  The question stumped me.  I had never thought about it.  Having thought about it, I got the answer.  Or at least, I think I have.  But before giving you the answer, I need to digress.


रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे

raamo raajmanih sadaa vijayate ramam ramesham bhaje |

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः

raamenabhihtaa nishaacharchamu ramay tasmay namah ||

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्
ramannasti paraynam partaram ramasya daasosmyaham |
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर
rame chittalayah sadaa bhavatu me bho raam maamuddhar ||


What I have given you above is a small part from the “Sri Rama Raksha Stotram”, believed to have been composed by the sage Budha Koushika.  It is a prayer to Rama.  Since you still don’t know sandhi and how to break up words, this may seem difficult to understand.  But you will get the sense.  Let’s take it bit by bit.  Rama, a jewel (mani) among kings, is always victorious.  I worship Rama Ramesha.  Why is Rama also Ramesha?  Rama is an incarnation of Vishnu.  Ramaa is Lakshi, Vishnu’s consort.  Therefore, Ramesha, Ramaa’s lord, is Vishnu, or Rama.  Nishaacharas are those who wander around (chara) in the night (nishaa) and Rama destroyed their army (chamu).  I am bowing down before Rama.  There is no refuge or resort (paraayana) superior (paratara) to Rama.  I am Rama’s servant (daasa).  May my mind (chitta) always (sadaa) be dissolved in Rama.  Oh, Rama!  Save me. Taken bit by bit, it should be clear now.

Sanskrit is deceptive.  Sanskrit poets were clever and there is always something hidden somewhere.  Appearances are deceptive and it’s a bit like an onion with several layers.  Having understood the prayer, let’s take a closer look.  If you want, take out the vibhakti table for the masculine gender (Rama) and focus only on the singular.  Forget the dual and the plural.  Now blank out everything else and look at the terms in the prayer that have Raama.  There is Raamah, Raamam, Raamena, Raamaaya, Raamat, Raamasya, Raame and Raama.  In that prayer, the poet has given you the masculine gender (actually the “a”-kaaraanta type) singular vibhakti table.  Poetry and prayers are easier to remember.  Perhaps this is a way for you to remember the vibhakti table too.

There is a very rich tradition of Sanskrit prosody (cchanda).  In a more advanced blog, we will revisit it and you will find the binomial theorem, Pascal’s triangle and even the Fibonacci series in such texts.  For the moment, there is a notion of syllable (akshara) and syllables are laghu (light) or guru (heavy).  Let’s call these L and G.  There are rules on how syllables are formed.  For example, no syllable should have more than one vowel.  If that vowel is a, i, u, r or l, the syllable is L.  Otherwise, it is G.  A syllable with aa will be G and so on.  You won’t yet be able to break up poetry into syllables.  Be patient and wait for that expertise.  But you should be able to understand what I am doing.  Let me now break up the first line of the prayer into syllables, as shown below.  As G and L, the structure is GGG LLG LGL LLG GGL GGL and G.  (In analysis and discussion of Sankrit prosody, the convention is to cluster the syllables into groups of 3, GGG, LLG and so on.)  There are 19 syllables in this first line.  But the point is this.  If I analyze any of the other lines, even from parts of the Sri Rama Raksha Stotram that I have not reproduced, you will always find 19 syllables.  And the pattern will always be GGG LLG LGL LLG GGL GGL G.  Depending `on how the G-s and L-s are chosen, I have different kinds of metres.  This particular one is called “shardulavikridita” or tiger’s play.  If I am a good poet, once I have picked a metre, I must stick with it throughout the poem, even if I am composing an extremely long poem.

raa mah raa ja ma nih sa daa vi ja ye te raa mam ra me sham bha je

Let’s get back to Hastinapura, Nagasahvya and Nagapura.  Syllable-wise, the structure of Nagapura is GLL-L.  The structure of Hastinapura is GLG-LL and the structure of Nagasahvya GLG-LL.  Nagapura is a synonym for Hastinapura in meaning.  It is not a synonym for Hastinapura in structure of syllables.  Using Nagapura or Gajapura would have broken the metre.  Use of Nagasahvya or Gajasahvya retains the metre.  I am not a great Sanskrit scholar, but I think I have the right answer.  Isn’t there great beauty in this?

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इस व्याख्यान के लेखक, बिबेक देबरॉय, महाभारत के संस्कृत से अंग्रेजी अनुवाद पर काम कर रहे हैं । महाभारत का कर्मक्षेत्र हस्तिनापुर रहा है जो कि कुरु वंश कि राजधानी था । हस्तिनापुर मेरठ से ४० किमी दूर है । कहा जाता है कि इस जगह का नाम हस्तिनापुर यहाँ के राजा हस्ती के नाम पर पड़ा है । एक व्याख्या यह हो सकती है कि "हस्तिन" का अर्थ होता है हाथी और "पुरा" यानी शहर । यहाँ हाथियों कि अधिकता रही होती जिसके कारण यह नाम पड़ा । महाभारत के समय में हाथियों का प्रयोग बहुत अधिक था, कुरुक्षेत्र के युद्ध में भी । शब्द "नाग" के कई अर्थ हैं और हाथी उनमे से एक है । "गज" का अर्थ भी हाथी होता है । "साह्वय" ऐसा शब्द है जो संस्कृत साहित्य में आम नहीं है और इसका किसी शब्दकोष में मिलना भी कठिन ही है । "साहव" का अर्थ होता है सम्बोधन । अधिकतर लोगों ने हस्तिनापुर सुना होगा । अगर आपने महाभारत ध्यान से नहीं पढ़ी तो आप नहीं जानते होंगे कि हस्तिनापुर को नागसाह्वय या गजसाह्वय भी कहा गया है । दोनों ही नाम हाथी से सम्बंधित हैं तथा हस्तिनापुर के पर्यायवाची हैं । शब्द "वारन" का अर्थ भी हाथी होता है और कहीं कहीं हस्तिनापुर को वारनसाह्वय भी कहा गया है ।

एक व्यक्ति हैं जिनका नाम अभिनव अग्रवाल है । वह बहुत गंभीर और देखभाल कर महाभारत पढ़ने वालो में से हैं और ऐसे ही बिबेक देबरॉय भी हैं(इस व्याख्यान के लेखक) । अभिनव महाभारत का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ते हैं, संस्कृत नहीं । अभिनव ने एक प्रश्न किया । महाभारत में हस्तिनापुर को नागसाह्वय और गजसाह्वय क्यों कहा गया है, नागपुर या गजपुर क्यों नहीं ? यह भी तार्किक नाम हैं । इस प्रश्न से मैं अवाक् रह गया । मैंने इसके बारे में सोचा नहीं था पर चिंतन करने पर उत्तर मिल गया (कम से कम मुझे ऐसा ही प्रतीत होता है) । इसका उत्तर बताने से पहले मैं आपको कुछ और बताना चाहता हूँ ।

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे 
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः 
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् 

रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर 

यह "श्री राम रक्षास्तोत्रम" का एक छोटा सा भाग है । माना जाता है कि इसे ऋषि "बुद्ध कौशिक" ने रचा था । यह प्रार्थना प्रभु राम को समर्पित है । अगर आपको संधि-विच्छेद का ज्ञान नहीं है तो इसे समझना थोड़ा कठिन हो सकता है । राम, राजाओ में मणि जैसे, हमेशा जीतने वाले । मैं उन राम रमेश कि अर्चना करता हूँ । राम, रमेश कैसे हैं ? प्रभु राम, विष्णु के अवतार हैं । रमा, लक्ष्मी जी हैं, जो कि विष्णु कि भार्या हैं । इसलिए रमा के इष्ट विष्णु, रमेश या राम । "निशाचर" वो जीव/प्राणी जो रात्रि में विचरण करते (घुमते) हैं । राम उनकी सेना(चमू) को ध्वस्त करते हैं । राम को मेरा नमन । राम से अच्छी कोई शरण नहीं । मैं राम का दास हूँ । राम सदा मेरे चित्त (ह्रदय) में बसें । हे राम ! मेरा उद्धार करो । 

संस्कृत एक भ्रामक भाषा है । संस्कृत के रचनाकार बहुत ही चतुर थे, संस्कृत साहित्य में हर शब्द में कुछ छुपा हो सकता है । संस्कृत के लेख की दिखावट भ्रामक हो सकती है ।यह एक प्याज कि तरह कई परतों में  होता है । हमने प्रार्थना तो समझ ली, चलिए अब थोड़ा अधिक ध्यान से निरिक्षण करते हैं । चाहे तो "राम" की विभक्ति सारणी देख सकते हैं, एकवचन के लिए, द्विवचन और बहुवचन को अनदेखा कर सकते हैं । अब प्रार्थना के उन शब्दों को पुनः देखते हैं जिनमे राम है । रामः, रामम, रामेणा, रामया, रामात, रामस्य, रामे और हे राम/भो राम । इस प्रार्थना में रचनाकार ने पुल्लिंग (अकारान्त)एकवचन विभक्ति सारणी बताई है । यह विभक्ति याद रखने की लिए प्रयोग किया जा सकता है ।


संस्कृत छंदशास्त्र बहुत ही समृद्ध है । आगे के छंदो में हम द्विपद प्रमेय (binomial theorem), मेरुप्रस्तार/हलायुध त्रिकोण (pascal's triangle), हेमचन्द्र संख्या(fibonacci sequence) भी देखेंगे । आरम्भ के लिए, सबसे छोटा अक्षर होता है तथा अक्षर लघु(ल) या गुरु(ग) होते हैं । अक्षर की रचना के भी नियम होते हैं जैसे : किसी भी अक्षर के साथ एक से अधिक स्वर नहीं हो सकते । अगर वह स्वर 'अ', 'इ', 'उ', 'र' या 'ल' है तो अक्षर लघु अथवा गुरु होगा ।  किसी अक्षर के साथ 'आ' होने पर वह गुरु होगा आदि । अभी आप किसी श्लोक को अक्षरों में नहीं बदल पाएंगे पर समझ सकेंगे । अब मैं प्रार्थना की पहली पंक्ति को अक्षरों में बदलता हूँ । लघु को 'ल' और गुरु को 'ग' मानकर जो संरचना बनेगी वो ऐसी होगी



ग ग ग - ल ल ग - ल ग ल - ल ल ग - ग ग ल - ग ग ल - ग 


(छंदशास्त्र की विश्लेषण में अक्षरों को सामान्यतया ३ के समूह में रखा जाता है ।) यहाँ प्रथम पंक्ति में १९ अक्षर हैं । यहाँ समझने वाली बात यह है की अगर आप "श्री राम रक्षास्तोत्रम" के किसी और भाग(पंक्ति) का विश्लेषण करेंगे (वो पंक्तियाँ भी जो यहाँ नहीं लिखी हैं) तो भी सदैव १९ अक्षर ही मिलेंगे और उनका स्वरुप भी ग ग ग - ल ल ग - ल ग ल - ल ल ग - ग ग ल - ग ग ल - ग  रहेगा । विभिन्न प्रकार के श्लोक गुरु और लघु अक्षरों के विभिन्न स्वरूपों पर आधारित होते हैं ।  यह श्लोक "शार्दूलविक्रीड़ित" है । एक अच्छा लेखक अपनी रचना को एक  ही स्वरुप में रखता है चाहे वो रचना कितनी भी बड़ी हो ।

रा मः रा ज म णिः स दा वि ज य ते रा मम् र मे शम् भ जे ।

अब बात करते हैं हस्तिनापुर के बारे मे ।
"नागपुर" मे अक्षरों का स्वरुप है: ग ल ल - ल ।
"हस्तिनापुर" मे अक्षरों का स्वरुप है : ग ल ग - ल ल
"नागसाह्वय" मे अक्षरों का स्वरुप है : ग ल ग - ल ल
नागपुर, हस्तिनापुर का पर्यायवाची है परन्तु केवल शाब्दिक अर्थ मे । यह अक्षरों के स्वरुप मे हस्तिनापुर का पर्यायवाची नहीं है । नागपुर या गजपुर का प्रयोग श्लोक की ताल को भंग कर देता । नागसाह्वय या गजसाह्वय के प्रयोग से श्लोक का स्वरुप बना रहता है । मैं संस्कृत का पंडित तो नहीं परन्तु मुझे लगता है की यह उत्तर सही है ।

Credit: Shri Bibek Debroy
Content is provided as is without any alteration but with translation in hindi and with minor additions wherever needed.

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