महातेजस्वी भगवान् अपनी शक्ति से महत्तत्व की सृष्टि करके फिर अहंकार और उसके अभिमानी देवता प्रजापति को उत्पन्न करते हैं ।(४१६)
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यह सम्पूर्ण जगत व्यक्त कहलाता है। प्रतिदिन इसका क्षरण(क्षय) होता है, इसलिए इसको क्षर कहते हैं ।क्षरतत्वों में सबसे पहले महत्तत्व की सृष्टि हुई है । (४१७)
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प्रकृतिवादी विद्वान्, मूल प्रकृति को अव्यक्त कहते हैं। उससे दूसरा तत्व प्रकट हुआ जो 'महत्तत्व' कहलाता है। महत्तत्व से अहंकार नामक तीसरे तत्व की उत्पत्ति सुनी गयी है । सांख्य-दर्शन के ज्ञाता विद्वान् अहंकार से सूक्ष्म भूतों का - पञ्च तन्मात्राओं का प्रादुर्भाव बतलाते हैं । इन आठों को प्रकृति कहते हैं; इनसे सोलह तत्वों की उत्पत्ति होती है, जो विकृति कहलाते हैं ।
विकार - पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ, ग्यारहवां मन और पांच स्थूलभूत
ये प्रकृति और विकृति मिलकर चौबीस तत्व होते हैं
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