Sunday, July 27, 2014

श्लोक

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण: ।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥


सप्तचिरञ्जीविनां नामानि -
• अश्वत्थामा
• बलिः
• व्यासः
• हनूमान्
• विभीषणः
• कृपः
• परशुरामः


ये सात चिरंजीवी(हमेशा जीवित रहने वाले) हैं - अश्वत्थामा, बाली, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृप, परशुराम |

These are the seven immortals - Ashwatthama, Bali, Ved Vyas, Vibhishan, Krip, Parshu Ram.

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काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥


एक विद्यार्थी को कौव्वे की तरह जानने की चेष्टा करते रहना चाहिए, बगुले की तरह मन लगाना(ध्यान करना) चाहिए, कुत्ते की तरह सोना चाहिए, काम से काम और आवश्यकतानुसार खाना चाहिए और गृह-त्यागी होना चाहिए |
यही पांच लक्षण एक विद्यार्थी के होते है |

A student should be alert like a crow, have concentration like that of a Crane and sleep like that of a dog that wakes up even at slightest of the noise. The student should eat scantily to suffice his energy needs and neither less not more. Also he should stay away from chores of daily house hold stuff and emotional attachment.
 
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गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिंतयेत्।
वर्तमानेन कालेन वर्तयंति विचक्षणाः॥


जो बीत चुका उसकी चिंता करना बेकार है | जो आने वाला है उसकी भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है | बुद्धिमान वे है जो वर्त्तमान में जीते हैं |

The clearheaded, wise, focus on the present. they don't mourn for the past that has gone. they don't worry for the future that is not yet come.

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उद्यमेन हि सिद्धन्ति कार्याणि ना मनोरथै ।
न हि सुप्तस्य सिंघस्य प्रविशति मुखे मृगाः।।


जिस तरह सोते शेर में मुह में हिरन नहीं आता, पेट भरने की लिए उसे शिकार करना पड़ता हैं, उसी तरह, मेहनत(प्रयत्न) करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं सिर्फ सोचने से नहीं |
 

Work gets accomplished by putting in effort, and certainly not by mere wishful thinking. Deer certainly do not enter a sleeping lion’s mouth.

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सत्यम ब्रूयात् प्रियम् ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यम अप्रियम् |
प्रियम् च नानृताम्ब्रुयात्, एष: धर्म सनातनः |
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सत्य बोलो , प्रिय बोलो | अप्रिय मत बोलो, अगर वह सत्य हो तो भी |
प्रिय और सत्य बोलना ही सनातन धर्म है |

Always speak the truth and that which will please others;
even if it is the truth, do not utter if it is unpleasant to others.
To speak what pleases others and the truth, is the Sanatan Dharma.


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नास्ति विद्या समं चक्षू नास्ति सत्य समं तप: |
नास्ति राग समं दु:खम् नास्ति त्याग समं सुखम् ||


विद्या के बराबर आँखें नहीं, सत्य के बराबर कोई तप नहीं |
किसी से द्वेष के बराबर कोई दुःख नहीं और त्याग जैसा कोई सुख नहीं ||

No eyes can compete with knowledge,
no hard work is equal to speaking truth,
no hate is equal to sadness and
no happiness is greater than sacrifice.

 

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काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥


एक विद्यार्थी को कौव्वे की तरह जानने की चेष्टा करते रहना चाहिए, बगुले की तरह मन लगाना(ध्यान करना) चाहिए, कुत्ते की तरह सोना चाहिए, काम से काम और आवश्यकतानुसार खाना चाहिए और गृह-त्यागी होना चाहिए |
यही पांच लक्षण एक विद्यार्थी के होते है |

A student should be alert like a crow, have concentration like that of a Crane and sleep like that of a dog that wakes up even at slightest of the noise. The student should eat scantily to suffice his energy needs and neither less not more. Also he should stay away from chores of daily house hold stuff and emotional attachment.


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ॐ असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
 
मृत्योर्मामृतं गमय ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

-बृहदारण्यक उपनिषद् 1.3.28.

हिंदी
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मैं असत्य की ओर नहीं, सत्य की ओर जाऊँ,
मैं अन्धकार की तरफ नहीं, रौशनी की तरफ जाऊँ,
मैं मृत्यु को नहीं, अमृत को पाऊँ |

English
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Lead me not to unreal but real,
Lead me not to darkness but light,
Lead me not to death but immortality.

sandhi
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सद्गमय -> सत + गमय - go to truth
ज्योतिर्गमय -> ज्योति + गमय - go to light
मृत्योर्मामृतं -> मृत्यु + मा + अमृतम् - not death but immortality

word meaning
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असत - Unreal
मा - do not
तमस - Darkness

Pronunciation:
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oṁ asato mā sad gamaya
tamaso mā jyotir gamaya
mṛtyor mā amṛtaṁ gamaya
oṁ śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ


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'मनः शौचं, कर्म शौचं, कुल शौचं च भारत;
शरीर शौचं, वाक् शौचं, शौचं पञ्च विधः स्मृतम्'।

धर्म लक्षणों में पांचवाँ लक्षण शौच(शुचि) अर्थात पवित्रता है १. मन की पवित्रता,२. कार्य की पवित्रता, ३. कुल की पवित्रता, ४. शरीर की पवित्रता और ५. वाणी की पवित्रता, अर्थात जो इन पांचो दृष्टियों से पवित्र है उसी को वास्तविकता में पवित्र माना जा सकता है |  

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1 comment:

Anonymous said...

what is the source of this sanskrit shlok posted by you

काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥