संख्याओं को शब्द या श्लोक के रूप में आसानी से याद रखने की प्राचीन भारतीय पद्धति |
शंकरवर्मन द्वारा रचित सद्रत्नमाला का निम्नलिखित श्लोक इस पद्धति को स्पष्ट करता है -
नज्ञावचश्च शून्यानि संख्या: कटपयादय:|
मिश्रे तूपान्त्यहल् संख्या न च चिन्त्यो हलस्वर:||
Transiliteration:
nanyāvacaśca śūnyāni saṃkhyāḥ kaṭapayādayaḥ
miśre tūpāntyahal saṃkhyā na ca cintyo halasvaraḥ
अर्थ: न, ञ तथा अ शून्य को निरूपित करते हैं। (स्वरों का मान शून्य है) शेष नौ अंक क, ट, प और य से आरम्भ होने वाले व्यंजन वर्णों द्वारा निरूपित होते हैं। किसी संयुक्त व्यंजन में केवल बाद वाला व्यंजन ही लिया जायेगा। बिना स्वर का व्यंजन छोड़ दिया जायेगा।
उदाहरण:
1). सदरत्नमाला में पाई का मान
शंकरवर्मन द्वारा रचित सद्रत्नमाला का निम्नलिखित श्लोक इस पद्धति को स्पष्ट करता है -
नज्ञावचश्च शून्यानि संख्या: कटपयादय:|
मिश्रे तूपान्त्यहल् संख्या न च चिन्त्यो हलस्वर:||
Transiliteration:
nanyāvacaśca śūnyāni saṃkhyāḥ kaṭapayādayaḥ
miśre tūpāntyahal saṃkhyā na ca cintyo halasvaraḥ
अर्थ: न, ञ तथा अ शून्य को निरूपित करते हैं। (स्वरों का मान शून्य है) शेष नौ अंक क, ट, प और य से आरम्भ होने वाले व्यंजन वर्णों द्वारा निरूपित होते हैं। किसी संयुक्त व्यंजन में केवल बाद वाला व्यंजन ही लिया जायेगा। बिना स्वर का व्यंजन छोड़ दिया जायेगा।
उदाहरण:
1). सदरत्नमाला में पाई का मान
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