Wednesday, August 20, 2014

कहानी दो अंकों की

===========================

कला और विज्ञान को आमतौर पर अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाता है. अंग्रेज़ों द्वारा तैयार की गयी वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली में भी दोनों विषय माध्यमिक स्तर पर ही अलग कर दिये जाते है. क्या कला और विज्ञान साथ-साथ नहीं चल सकते? अगर कोई कहे कि कम्प्यूटर क्रांति कला की एक बड़ी देन है तो उस व्यक्ति पर निश्चित रूप से संदेह की दृष्टि से देखा जायेगा!

कला और विज्ञान का एकात्म स्वरूप के ईसा से कोई ५०० वर्ष पूर्व भारतीय विद्वान पिंगल को विदित था. यदि कहें कि कम्प्यूटर क्रांति का स्रोत पिंगल की इसी सोच में छिपा है, तो गलत न होगा! कैसे? आइये जानने का प्रयास करें.

कम्प्यूटर जो भी कुछ करता है, उसमें एक गणना छिपी होती है. अब एक निर्जीव वस्तु गणना कैसे करे, और उस वस्तु को गिनती समझायी जाय तो भला कैसे! यह सब संभव है द्विअंकीय प्रणाली के माध्यम से. ये दो अंक १ और ० हार्ड डिस्क के किसी क्षेत्र के चुम्बकीयकृत होने या न होने को निरूपित कर सकते हैं या सी.डी. के किसी स्थान पर प्रकाश के ध्रुवीयकरण की दो अलग अवस्थाओं को भी. अब प्रश्न यह है कि इसमें कला कहाँ से आ गयी? तो जवाब है कि यह विचार कि किसी वस्तु की दो अवस्थाओं के आधार पर कोई भी कठिन से कठिन गणना संभव है, कला से ही आया. अब सोचिये न, ये दो अवस्थायें कविता में प्रयोग किये जाने वाले छन्दों के किसी स्थान पर लघु अथवा गुरु होने का निरूपण भी तो कर सकतीं हैं! द्विअंकीय सिद्धान्त यहीं से आया! पिंगल के छन्द शास्त्र में पद्यों में छिपे इस सिद्धान्त का वर्णन बहुत सहजता और वैज्ञानिक ढंग से किया गया है.

पिंगल ने कई छन्दों का वर्गीकरण आठ गणों के आधार पर किया. इस वर्गीकरण को समझने के लिये पहले देखें एक सूत्र: “यमाताराजभानसलगा“. यदि मात्रा गुरु है तो लिखें १ और यदि लघु है तो ०. अब इस सूत्र में तीन-तीन अक्षरों को क्रमानुसार लेकर बनायें आठ गण,

यगण = यमाता = (०,१,१)
मगण = मातारा = (१,१,१)
तगण = ताराज = (१,१,०)
रगण = राजभा = (१,०,१)
जगण = जभान = (०,१,०)
भगण = भानस = (१,०,०)
नगण = नसल = (०,०,०)
सगण = सलगा = (०,०,१)

अब ये आठ गण यूँ समझिये कि हुये ईंट, जिनसे मिलकर कविता का सुंदर महल खड़ा है. इन ईंटों का प्रयोग करके बहुत से सुंदर छन्द परिभाषित और वर्गीकृत किये जा सकते हैं. यही नहीं, ये आठ गण ० से लेकर ७ तक की संख्याओं का द्विअंकीय प्रणाली में निरूपण कर रहे हैं, सो अलग. और तो और इनमें गणित की सुप्रसिद्ध द्विपद प्रमेय [Binomial Theorem] भी छिपी बैठी है! यदि ल और ग दो चर हैं [या दो अवस्थायें हैं], तो (ल+ग)३ के विस्तार में ल२ग का गुणांक = उन गणों की संख्या जिनमें दो लघु तथा एक गुरु है = ३ [ज‍गण, भगण, सगण]. तो इस प्रकार (ल+ग)३ = ल३+ ३ल२ग+ ३लग२+ ग३.

छन्दों से गणित और कम्प्यूटर विज्ञान का यह रास्ता पिंगल ने दिखाया. क्या यह एक संयोग ही है कि छन्दों के अध्ययन में भी हम विश्व में अग्रणी रहे और आज २५०० वर्षों के बाद कम्प्यूटर विज्ञान में भी अपनी सर्वोत्कॄष्टता सिद्ध कर चुके हैं! शायद यह सब हमारे उन पुरखों का आशीर्वाद है जिनकी कल की सोच की रोशनी हमारे आज को प्रकाशित कर रही है.

स्त्रोत:
http://vandemataram.wordpress.com/2007/01/21/कहानी-दो-अंकों-की/

Wednesday, August 6, 2014

लोट् लकार(आज्ञार्थक/प्रार्थनार्थक) और सम्बोधन(भवान्/भवति, त्वम् ) प्रयोग

सम्बोधन के बिना आज्ञा देना असंभव है इसलिए लोट् लकार के साथ सम्बोधन के विभिन्न प्रयोग प्रस्तुत है :

-----------
प्रथम पुरुष
-----------
भवान्/भवति आदर प्रदर्शित करते है और सदा प्रथम पुरुष में आते है इसलिए किसी को आदरसहित प्रार्थना के लिए भवान्/भवति का प्रयोग होता है |

उदाहरण :
--> भवान् जलम् पिबतु |
आप जल पीजिये |

--> भवति आगच्छतु |
आप(स्त्रीलिंग) आइये |

* सामंजस्य के लिए क्रिया भी प्रथम पुरुष एकवचन से ली गयी है |

यदि किसी बड़े व्यक्तित्व को सम्मान देते है तो प्रथम पुरुष एकवचन की जगह प्रथम पुरुष बहुवचन प्रयोग होता है |
उदाहरण :
--> भवन्तः जलम् पिबन्तु |
आप जल पीजिये |

--------------
मध्यम पुरुष
--------------
आज्ञा देने या सुहृदयता(closeness) दर्शाने के लिए त्वम् का प्रयोग होता है जो कि मध्यम पुरुष है |

उदाहरण :
--> राम त्वं जलम् पिब |
राम तुम जल पियो |
या
--> राम जलम् पिब |
राम जल पियो |

* सामंजस्य के लिए क्रिया भी मध्यम पुरुष एकवचन से ली गयी है |

------------
उत्तम पुरुष
------------
हम अपने आप को आज्ञा नहीं दे सकते और न ही प्रार्थना की जा सकती है इसलिए लोट् लकार उत्तम पुरुष हमेशा आज्ञा लेने/मांगने के भाव को दर्शाता है |

--> अहं भोजनं खादानि किम् ?
क्या मैं भोजन खा लूँ |

इसके अतिरिक्त इच्छा (wish) दर्शाने के लिए भी उत्तम पुरुष लोट् लकार का प्रयोग होता है |
--> नंदाम शरदः शतम् |
हम सैकड़ो वर्षोँ के लिए आनन्दित रहें |

======--ध्यान दें--=========
आज्ञा देते समय सदैव आप,तुम या नाम लेकर सम्बोधित किया जाता है | यदि 'तुम' से सम्बोधित किया गया है तो वह मध्यम पुरुष हो जायेगा परन्तु यदि 'आप' या नाम से सम्बोधित किया जाता है तो वह प्रथम पुरुष होगा |
जैसे :
--> त्वम् उपविश - तुम बैठो - मध्यम पुरुष |
--> भवन्तः पठन्तु - आप लोग पढ़िए - प्रथम पुरुष |
--> श्याम भवान् मया सह चलतु - श्याम, मेरे साथ चलो - प्रथम पुरुष |
--> श्याम, त्वं मया सह चल - श्याम, मेरे साथ चलो - मध्यम पुरुष |

परन्तु यदि त्वम् और भवान् के अलावा किसी शब्द या नाम के प्रथम पुरुष का प्रयोग होता है तो वाक्य की दिशा बदल जाती है |
--> श्यामः मया सह चलतु - श्याम को मेरे साथ चलने दो |
--> बालका: उद्याने क्रीडन्तु - बच्चो को खेलने दो |
--> शिष्य: पाठं पठतु - शिष्यों को पढ़ने दो |
(यहाँ वक्ता किसी और से बात कर रहा है )

Saturday, August 2, 2014

१ से परार्ध(१,00,00,00,00,00,00,00,000) तक गिनती |

Sanskrit counting from 1 - 1,00,00,00,00,00,00,00,000

==============================
एक-दश-शत सहस्रायुत-लक्ष-प्रयुत-कोटयः क्रमशः |
अर्बुदमब्ज खर्व-निखर्व-महापद्म-शङ्कवस्तस्मात् ||
जलधिश्चान्तं मध्यं परार्धमिति दशगुणोत्राः संज्ञाः |
संख्यायाः स्थानानां व्यवहारार्थं कृताः पूर्वैः ||
==============================


1. One एकम् (ekam)
2.Two द्वे (dve)
3.Three त्रीणि (treeni)
4. Four चत्वारि (chatvaari)
5. Five पञ्च (pancha)
6. Six षट् (shat)
7. Seven सप्त (sapta)
8. Eight अष्ट (ashta)
9. Nine नव (nava)
10. Ten दश (dasha)
11. Elelven एकादश (ekaadasha)
12. Twelve द्वादश (dvaadasha)
13. Thirteen त्रयोदश (trayodasha)
14. Fourteen चतुर्दश (chaturdasha)
15. Fifteen पञ्चदश (panchadasha)
16. Sixteen षोडश (shodash)
17. Seventeen सप्तदश (saptadasha)
18. Eighteen अष्टादश (ashtaadasha)
19. Nineteen नवदश (navadasha)
20. Twenty विंशतिः (vimshatihi)
21. Twenty one एकविंशतिः (ekavimshatihi)
22. Twenty two द्वाविंशतिः (dvaavimshathi)
23. Twenty three त्रयोविंशतिः (trayovimshatihi)
24. Twenty four चतुर्विंशतिः (chaturvimshatihi)
25. Twenty five पञ्चविंशतिः (panchavimshatihi)
26. Twenty six षड्विंशतिः (shadvimshatihi)
27. Twenty seven सप्तविंशतिः (saptavimshatihi)
28. Twenty eight अष्टाविंशतिः (ashtaavimshatihi)
29. Twenty nine नवविंशतिः (navavimshatihi)
30. Thirty त्रिंशत् (trimshat)
31. Thirty one एकत्रिंशत् (ekatrimshat)
32. Thirty two द्वात्रिंशत् (dvaatrimshat)
33. Thirty three त्रयस्त्रिंशत् (trayastrimshat)
34. Thirty four चतुस्त्रिंशत् (chatustrimshat)
35. Thirty five पञ्चत्रिंशत् (panchatrimshat)
36. Thirty six षट्त्रिंशत् (shat-trimshat)
37. Thirty seven सप्तत्रिंशत् (saptatrimshat)
38. Thirty eight अष्टत्रिंशत् (ashtatrimshat)
39. Thirty nine नवत्रिंशत् (navatrimshat)
40. Forty चत्वारिंशत् (chatvaarimshat)
41. Forty one एकचत्वारिंशत् (ekachatvaarimshat)
42. Forty two द्विचत्वारिंशत् (dvichatvaarimshat)
43. Forty three त्रिचत्वारिंशत् (trichatvaarimshat)
44. Forty four चतुश्चत्वारिंशत् (chatushchatvaarimshat)
45. Forty five पञ्चचत्वारिंशत् (panchachatvaarimshat)
46. Forty six षट्चत्वारिंशत् (shatchatvaarimshat)
47. Forty seven सप्तचत्वारिंशत् (saptachatvaarimshat)
48. Forty eight अष्टचत्वारिंशत् (ashtachatvaarimshat)
49. Forty nine नवचत्वारिंशत् (navachatvaarimshat)
50. Fifty पञ्चाशत् (panchaashat)
51. Fifty one एकपञ्चाशत् (ekapanchaashat)
52. Fifty two द्विपञ्चाशत् (dvipanchaashat)
53. Fifty three त्रिपञ्चाशत् (tripanchaashat)
54. Fifty four चतुःपञ्चाशत् (chatuhupanchaashat)
55. Fifty five पञ्चपञ्चाशत् (panchapanchaashat)
56. Fifty six षट्पञ्चाशत् (shatpanchaashat)
57. Fifty seven सप्तपञ्चाशत् (saptapanchaashat)
58. Fifty eight अष्ट्पञ्चाशत् (ashtapanchaashat)
59. Fifty nine नवपञ्चाशत् (navapanchaashat)
60. Sixty षष्टिः (shashtihi)
61. Sixty one एकषष्टिः (ekashashtihi)
62. Sixty two द्विषष्टिः (dvishashtihi)
63. Sixty three त्रिषष्टिः (trishashtihi)
64. Sixty four चतुःषष्टिः (chatuhushashtihi)
65. Sixty five पञ्चषष्टिः (panchashashtihi)
66. Sixty six षट्षष्टिः (shatshashtihi)
67. Sixty seven सप्तषष्टिः (saptashashtihi)
68. Sixty eight अष्टषष्टिः (ashtashashtihi)
69. Sixty nine नवषष्टिः (navashashtihi)
70. Seventy सप्ततिः (saptatihi)
71. Seventy one एकसप्ततिः (ekasaptatihi)
72. Seventy two द्विसप्ततिः (dvisaptatihi)
73. Seventy three त्रिसप्ततिः (trisaptatihi)
74. Seventy four चतुःसप्ततिः (chatuhusaptatihi)
75. Seventy five पञ्चसप्ततिः (panchasaptatihi)
76. Seventy six षट्सप्ततिः (shatsaptatihi)
77. Seventy seven सप्तसप्ततिः (saptasaptatihi)
78. Seventy eight अष्टसप्ततिः (ashtasaptatihi)
79. Seventy nine नवसप्ततिः (navasaptatihi)
80. Eighty अशीतिः (asheetihi)
81. Eighty one एकाशीतिः (ekaasheetihi)
82. Eighty two द्व्यशीतिः (dvyasheetihi)
83. Eighty three त्र्यशीतिः (tryasheetihi)
84. Eighty four चतुरशीतिः (chaturasheetihi)
85. Eighty five पञ्चाशीतिः (panchaasheetihi)
86. Eighty six षडशीतिः (shadasheetihi)
87. Eighty seven सप्ताशीतिः (saptaasheetihi)
88. Eighty eight अष्टाशीतिः (ashtaasheetihi)
89. Eighty nine नवाशीतिः (navaasheetihi)
90. Ninety नवतिः (navatihi)
91. Ninety one एकनवतिः (ekanavatihi)
92. Ninety two द्विनवतिः (dvinavatihi)
93. Ninety three त्रिनवतिः (trinavatihi)
94. Ninety four चतुर्नवतिः (chaturnavatihi)
95. Ninety five पञ्चनवतिः (panchanavatihi)
96. Ninety six षण्णवतिः (shannavatihi)
97. Ninety seven सप्तनवतिः (saptanavatihi)
98. Ninety eight अष्टनवतिः (ashtanavatihi)
99. Ninety nine नवनवतिः (navanavatihi)
100. A hundred शतम् (shatam)
200 - द्विशत or द्वेशते (dvishat)
300 - त्रिशत (trishat)
400 - चतुःशत (chatuhu shat)
500 - पञ्चशत (punch shat)
600 - षट्शत (shatt shat)
700 - सप्तशत (sapt shat)

800 - अष्टशत (asht shat)
900 - नवशत (nav shat)
1,000 - सहस्र or दशशत (sahastra/dash shat)
2,000 - द्विसहस्र (dvi shahastra)
3,000 - त्रिसहस्र (tri
shahastra)
4,000 - चतःसहस्र (chatah
shahastra)
5,000 - पञ्चसहस्र (punch
shahastra)
6,000 - षट्सहस्र (shatt
shahastra)
7,000 - सप्तसहस्र (sapta
shahastra)
8,000 - अष्टसहस्र (ashta
shahastra)
9,000 - नवसहस्र (nav
shahastra)
10,000 - अयुत (ayut)
1,00,000 - लक्ष (laksh)
10,00,000 - प्रयुत (prayut)
1,00,00,000 - कोटि (koti)
10,00,00,000 - अर्बुद (arbud)
1,00,00,00,000 - अब्ज (abz)
10,00,00,00,000 - खर्व (kharva)
1,00,00,00,00,000 - निखर्व (nikharva)
10,00,00,00,00,000 - महापद्म (mahapadma)
1,00,00,00,00,00,000 - शङ्कु (shanku)
10,00,00,00,00,00,000 - जलधि (jaladhee)
1,00,00,00,00,00,00,000 - अन्त्य (antya)
10,00,00,00,00,00,00,000 - मध्य (madhya)
1,00,00,00,00,00,00,00,000 - परार्ध (paraardha)