Monday, October 14, 2019

शिवसहस्त्रनामस्तोत्र

ऋषि बोले: सूतजी ! आप सब जानते हैं । इसलिए हम आपसे पूछते हैं । प्रभो ! हरीश्वर लिङ्ग की महिमा का वर्णन कीजिये । तात ! हमने पहले से सुन रखा है कि भगवान् विष्णु ने शिव की आराधना से सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था । अतः उस कथा पर विशेष रूप से प्रकाश डालिये ।

सूतजी बोले: मुनिवरों ! भगवान् विष्णु ने पूर्वकाल में  हरीश्वर शिव से ही सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था । दैत्य अत्यन्त प्रबल होकर लोगों को पीड़ा देने और धर्म का लोप करने लगे । उन दैत्यों से पीड़ित हो देवताओं ने अपना दुःख भगवान् विष्णु से कहा । तब श्रीहरि कैलास जाकर आराधना करने लगे । वे हज़ार नामों से शिव की स्तुति करते तथा प्रत्येक नाम पर एक कमल चढ़ाते थे । तब भगवान् शङ्कर ने विष्णु के भक्तिभाव की परीक्षा लेने के लिए उनके लाये हुए एक हज़ार कमलों में से एक कमल छिपा दिया । भगवान् विष्णु ने एक फूल काम जानकार उसकी खोज आरम्भ की और सारी पृथ्वी का भ्रमण कर डाला परन्तु उन्हें वह फूल नहीं मिला । तब विशुद्धचेता विष्णु ने एक फूल की कमी पूर्ती के लिए अपने कमलसदृश एक नेत्र को ही निकालकर चढ़ा दिया । यह सब देख भगवान् शङ्कर बड़े प्रसन्न हुए और प्रकट होकर श्रीहरि से बोले - "हरे ! मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ । तुम इच्छानुसार वर मांगो । मैं तुम्हें मनोवांछित वस्तु दूंगा । तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदेय नहीं है ।"

सूतजी बोले: तदनन्तर देवाधिदेव महेश्वर ने तेजोराशिमय अपना सुदर्शन चक्र उन्हें दे दिया । उसको पाकर भगवान् विष्णु ने उन समस्त प्रबल दैत्यों का उस चक्र के द्वारा बिना परिश्रम के ही संहार कर डाला।

ऋषियों ने पूछा: शिव के सहस्त्रनाम कौन कौन हैं, बताइये, जिनसे सन्तुष्ट होकर महेश्वर ने श्रीहरि को चक्र प्रदान किया था? उन नामों के माहात्म्य का भी वर्णन कीजिये । वैसी बात सुनकर सूतजी ने शिव के चरणारविन्दों का चिन्तन करके इस प्रकार कहना आरम्भ किया ।

सूत उवाच
श्रूयतां भो ऋषिश्रेष्ठा येन तुष्टो महेश्वरः।
तदहं कथयाम्यद्य शैवं नामसहस्त्रकम् ।। १ ।।

सूतजी बोले: मुनिवरों ! सुनो, जिससे महेश्वर सन्तुष्ट होते हैं, वह शिवसहस्रनामस्तोत्र आज तुम सबको सुना रहा हूँ ।

शिवसहस्त्रनामस्त्रोत 
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शिवो हरो मृडो रुद्रः पुष्करः पुष्पलोचनः।
अर्थिगम्यः सदाचारः शर्वः शम्भुर्महेश्वरः ।। २ ।। 

१। शिव - कल्याणरूप
२। हरः - भक्तों के पाप-ताप हरने वाले
३। मृडः - सुखदाता
४।  रुद्रः - दुःख दूर करनेवाले
५। पुष्करः - आकाशस्वरुप
६। पुष्पलोचनः - पुष्प के सामान खिले हुए नेत्र वाले
७। अर्थिगम्यः - प्रार्थियों को प्राप्त होने वाले
८। सदाचारः - श्रेष्ठ आचरण वाले
९। शर्वः - संहारकारी
१०। शम्भुः - कल्याणनिकेतन
११। महेश्वरः - महान ईश्वर

चन्द्रापीडश्चन्द्रमौलीर्विश्वं विश्वम्भरेश्वरः ।
वेदान्तसारसन्दोहः कपाली नीललोहितः ।। ३ ।।

१२। चन्द्रापीडः - चन्द्रमा को शिरोभूषण के रूप में धारण करनेवाले
१३। चन्द्रमौलिः - सर पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करनेवाले
१४। विश्वम् - सर्वस्वरूप
१५। विश्वम्भरेश्वरः - विश्व का भरण-पोषण करनेवाले श्रीविष्णु के भी ईश्वर
१६। वेदान्तसारसन्दोहः - वेदान्त के सारतत्त्व सच्चिदानन्द ब्रह्म की साकार मूर्ति
१७। कपाली - हाथ में कपाल धारण करनेवाले
१८। नीललोहितः - (गले में) नील और (शेष अंगों में) लोहित वर्ण वाले