Friday, January 25, 2019

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गुरु गोबिंद दौउ खड़े, काके लागों पांय, बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताय ।

गुरु भी खड़े हैं और गोविन्द भी खड़े हैं (भगवान् भी खड़े हैं), शिष्य सोचता है किसके पैर छूने  चाहिए पहले । फिर शिष्य सोचता है की बलिहारी गुरु आपने मैं पहले गुरु के पैर छूऊंगा क्योंकि गुरु ने गोबिंद दियो बताय – इन्हीं ने बताया की ये गोविन्द है, यही पहचान कराते हैं अन्यथा, अन्यथा तो मोती हमारे हाथ में है, हीरा हमारे हाथ में है, हम पत्थर समझ कर उसे फ़ेंक देते हैं, अगर हमारे पास समझदारी नहीं है, ज्ञान नहीं है । गुरु का काम है, ज्ञान प्रदान करना । मनुष्य के प्रत्येक के चार गुरु होते हैं । प्रत्येक के पास होते हैं चार गुरु ।

पहला - माता, जिसने हमको उठना बैठना सिखाया, खाना पीना सिखाया, वो सबसे पहली गुरु है ।
दूसरा - पिता, जिसने चलना फिरना सिखाया, व्यवहार करना सिखाया, बोल चाल सिखाई ।
तीसरा - अध्यापक, जिसने alphabet  पढाई, पढना लिखना सिखाया, ABCD पढाई, अ,आ,इ, ई पढाई ।
चौथा - मित्र, जो माता पिता नहीं सिखाते, जो teacher नहीं सिखाते, वो Friends सिखाते हैं ।
पांचवां - सद्गुरु, वो बड़े भाग्य वाले को ही मिलता है । वो क्या देता है ? ज्ञान देता है ।
- डाo  अशोक शर्मा 

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