Tuesday, September 4, 2018

हास-परिहास

मूसे पर सांप राखै, सांप पर मोर राखै, बैल पर सिंह राखै, वाकै कहा भीती है |
पूतनिकों भूत राखै, भूत कों बिभूति राखै, छमुख कों गजमुख यहै बड़ी नीति है |
कामपर बाम राखै, बिषकों पीयूष राखै, आग पर पानी राखै सोई जग जीती है |
'देविदास' देखौ ज्ञानी संकर की साबधानी, सब बिधि लायक पै राखै राजनीति है |

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बार बार बैल कौ निपट ऊँचो नाद सुनि,
हुंकरत बाघ बिरुझानो रसरेला में |
भूधर भनत ताकी बास पाय शोर करि,
कुत्ता कोतवाल को बगानो बगमेला में |
फुंकरत मूषक को दूषक भुजंग तासों,
जंग करिबेको झुक्यो मोर हधेला में |
आपस में पारषद कहत पुकारी कछु
रारि सी मची है त्रिपुरारि के तबेला में ||

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भभूत लगावत शंकर को, अहिलोचन मध्य परौ झरि कै।
अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।
तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।
सुरभी-सुत वाहन भाग चले, तब गौरि हँसीं मुख आँचल दै॥

अर्थात् (प्रातः स्नान के पश्चात्) पार्वती जी भगवान शंकर के मस्तक पर भभूत लगा रही थीं तब थोड़ा सा भभूत झड़ कर शिव जी के वक्ष पर लिपटे हुये साँप की आँखों में गिरा। (आँख में भभूत गिरने से साँप फुँफकारा और उसकी) फुँफकार शंकर जी के माथे पर स्थित चन्द्रमा को लगी (जिसके कारण चन्द्रमा काँप गया तथा उसके काँपने के कारण उसके भीतर से) अमृत की बूँद छलक कर गिरी। वहाँ पर (शंकर जी की आसनी) जो बाघम्बर था, वह (अमृत बूंद के प्रताप से जीवित होकर) उठ कर गर्जना करते हुये चलने लगा। सिंह की गर्जना सुनकर गाय का पुत्र - बैल, जो शिव जी का वाहन है, भागने लगा तब गौरी जी मुँह में आँचल रख कर हँसने लगीं मानो शिव जी से प्रतिहास कर रही हों कि देखो मेरे वाहन (पार्वती का एक रूप दुर्गा का है तथा दुर्गा का वाहन सिंह है) से डर कर आपका वाहन कैसे भाग रहा है।

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धन्य कवि की लेखनी धन्य हास-परिहास, 
पत्नी भले भवानी हो, देत पति को त्रास।

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